तू मेरी अन्तर्नाद बनी - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
रविवार, जुलाई 20, 2025
तू सुरभित पुष्पों-सी कोमल,
मैं तेरा मधुमास बना।
तू जलती दीपक की लौ-सी,
मैं उसका विश्वास बना।
तू सागर की शांत लहर-सी,
मैं उसका उल्लास बना।
तू सन्ध्या की प्रथम रश्मि-सी,
मैं तेरा आकाश बना।
तू बाँसुरी की स्वर-सरिता,
मैं उसमें विस्तार बना।
तू नयन-किरणों की भाषा,
मैं तेरा संवाद बना।
तू उपवन की प्रथम हरियाली,
मैं तेरा अनुराग बना।
तू वन्दन की प्रथम ध्वनि-सी,
मैं तेरा अनुराग बना।
तू मेरे भीतर स्फुरती है,
जैसे गीतों का स्वाद बनी।
मैं तुझमें खोया हर पल हूँ,
तू मेरी अन्तर्नाद बनी।
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