रिश्तों का दौर - घनाक्षरी छंद - महेश कुमार हरियाणवी
सोमवार, जून 16, 2025
आया है ये वक्त कैसा
रक्त नहीं रक्त जैसा।
बेटा आज बाप को ही
अर्थ समझाता है।
चपर-चपर बोले
सुनता ना हौले-हौले।
जननी के सामने ना
सर को झुकाता है।
मौक़े की फ़िराक़ में है
सपनों की साख में है।
तिनका-सा ज्ञान लेके
सीने को फूलाता है।
धरती पे फैली बाहें
आसमान पे निगाहें।
ख़ुद का ही भार लेके
उड़ नहीं पाता है॥
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