शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)
योग - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
शनिवार, जून 21, 2025
योग ही से जीवनी है
योग ही देता सहारा।
प्रात उठ कर श्वास खींचो
और फिर बाहर निकालो।
करो प्रणायाम प्रतिदिन
नियम यह अविरल बनालो।
आयुष्य लम्बी चाहते हो
योग ही अप्रतिम किनारा।
डाल आसन योग करना
आध्यात्मिक ऊर्जा मिलेगी।
ओम् की ध्वनि अनवरत हो
ज्योति अन्तस की जलेगी।
गात ज्योतिर्मय बनेगा
गगन में जैसे सितारा।
मान्सपेशी पुष्ट होंगी
नित्यप्रति व्यायाम करना।
कुछ समय चलना निरंतर
और मन उल्लास भरना।
योग ही तो साधना है
व्यथा जाए रोग हारा।
मस्तिष्क मन की शान्ति चाहो
ईश का नित ध्यान धरना।
सर्व हित की ओर बढ़ कर
पाप से तुम विरत रहना।
संकल्प ले लो 'अंशुमाली'
बह चलो तुम योग धारा।
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