संदेश
मैं तैयार हूँ - कविता - परमानन्द कुमार राय
1 मैं तैयार हूँ! जग जीवन के झंझावात से, मुश्किलों के महापाषाण से, बाधाओं के व्यसन-व्यवधान से लड़ने को मैं तैयार हूँ! मुश्किलों से आगे …
मेरे बच्चों! - कविता - रुचा विजेश्वरी
मेरे बच्चों! जब तुम मेरी उम्र में पहुँचोगे, घर के साथ सुनने पड़ेंगे ताने समाज भर के... तुम सुनने की आदत डाल लेना, तुम्हे मिलेंगे कइय…
रिश्ते - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
कोमल किसलय चारु ललित हिय, सदाचार अपनापन जानो। देश काल सुपात्र परिधि मध्य, रिश्ते मृदु दृढ़तम नित जानो। सुप्रभात किरण मन मधुर मनोहर…
ग्रामीण परिवेश - कविता - सृष्टि देशमुख
ग्रामीण परिवेश है विशेष... यहाँ चलती हैं शुद्ध ठंडी हवा, जो छू जाती हैं इस तन को। यहाँ खुला हैं आसमाँ, उड़ते दिखते हैं रंग बिरंगी पंछी…
अरण्य चालीसा - चौपाई छंद - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
दोहाः गुरुपद कमल नमन करूँ, वन्दउ प्रथम गणेश। वरद हस्त मस्तक धरो, करिए कृपा विशेष॥ जय वन देवी, जय वन देवा। देत सकल जग मंगल मेवा॥ जय जय …
कलम का पुजारी - कविता - रमाकांत सोनी
नज़र उठाकर देखो ज़रा, पहचान लीजिए। कलम का पुजारी हूँ, ज़रा ध्यान दीजिए। शब्दों की माला लेकर, भाव मोती पिरोता हूँ। काग़ज़ कलम लेकर, मैं सप…
हरसिंगार झर रहा है - कविता - राकेश कुशवाहा राही
वर्षों बाद मैं अपनी माटी से मिला तो ख़ुशबुओं से लगा कोई इंतज़ार कर रहा है। सुबह-सुबह हरसिंगार झर रहा है उसकी ख़ुशबू से घर आँगन महक रहा …
काश! मेरा हृदय पाषाण खंड होता - कविता - प्रवीन 'पथिक'
काश! मेरा हृदय पाषाण खंड होता, तोड़ देता वो सारी बेड़ियाँ; जो मिथ्या प्रेम का दामन पकड़, झकझोड़ती हैं मासूम हृदयों को। मीठी बातों की च…
चंद्रमौली भगवान - कविता - गणेश भारद्वाज
हे शिव शंकर डमरू वाले सीधे सादे भोले भाले भजन करूँ तन मन से तेरा अंतरमन में बसने वाले। पल में ख़ुश हो जाने वाला तुम सम ऐसा देव कहाँ है …
रुचा विजेश्वरी - लेख - दिव्या बिष्ट 'दिवी'
जैसा कि आप सभी जानते हैं सोशल मीडिया संचार का एक ऐसा विशाल माध्यम है जो पूरी दुनिया को जोड़े रखता है, ये एक 'वर्चुअल दुनिया' क…
हम लेखक हैं जनाब - कविता - दीक्षा
काश! लोग समझ पाते काश! एक लेखक की ज़िंदगी से रू-ब-रू हो पाते, वो कैसे लिखता है वो ही जानता है घंटो बैठकर लिखने के लिए बस चाँद को निहारत…
सावन - कह-मुकरी - मनीषा श्रीवास्तव
आवत देखो गरजत तड़कत, डर जाए जियरा ये बरबस। सावन में घिर-घिर करे पागल, को सखि साजन; नहिं सखि बादल। धानी रंग से मन भर जावे, गोरी को सुन्द…
मेरा मन मंदिर भी शिवाला है - गीत - आशीष कुमार
बाबा बसे हो काशी नगरिया काशी नगरिया हो काशी नगरिया कभी तो आओ हमरी दुअरिया हमरी दुअरिया हो हमरी दुअरिया। मेरा मन मंदिर भी शिवाला है इसम…
सावन में हरेली तिहार - गीत - रविंद्र दुबे 'बाबु'
जोहार हो संगी आगे आगे हरेली आवा आवा, खापा गेडी नाचा गावा, बनाव हरेली सावन के पहली तिहार मानो बारिश के रिमझिम फुहार जानो ख़ुश होगे जन्…
अभिमन्यु वध - कविता - परमानन्द कुमार राय
शंखनाद की बजी ध्वनि जब कुरुक्षेत्र के धर्म समर में। हो बेचैन से लगने लगे थे उस क्षण, युधिष्ठिर, अर्जुन के विरह में। भीम भी भयभीत दिखे …
गीता सार - कविता - गोकुल कोठारी
धर्म विरुद्ध है नीति जाकी कोई टार सका नहीं विपदा वाकी भूल गया तू एक ही क्षण में किस कारण तू खड़ा है रण में समझ यहाँ तेरा कौन सगा है सब…
मैं हारा हुआ एक भिक्षुक - कविता - राघवेंद्र सिंह
मैं हारा हुआ एक भिक्षुक, काया मेरी अधमरी हुई। मत पूछो मेरा हाल कोई, कितनी करुणा है भरी हुई। न ठौर ठिकाना है कोई, व्याकुलता बढ़ती जाती …
हरि - घनाक्षरी छंद - रविंद्र दुबे 'बाबु'
कमल नयन पट, नमन सकल जर, खलल जगत जब, हरि उठ छल धर। तप जप वश कर, बम शिव धर वर, मटक कमर तब, भसम करत खर। क़हर परशुधर, बरसत डटकर, क्षत्र वध …
इंतज़ार - कविता - मदन सिंह फनियाल
झुकी हर डाली फूलों से, कर रही है माली से गुहार। है बेसब्र हर फूल भी, गुंथकर बनने को महकता हार॥ फिर गुनगुनाता हर भँवरा, मँडराया वो भी ब…