कोमल किसलय चारु ललित हिय,
सदाचार अपनापन जानो।
देश काल सुपात्र परिधि मध्य,
रिश्ते मृदु दृढ़तम नित जानो।
सुप्रभात किरण मन मधुर मनोहर,
निर्मल स्नेहिल सरिता जानो।
नव भावों के नव चिन्तन मन,
अरुण प्रगति पथ रिश्ता जानो।
नव पल्लव नवपौध सृजित नव,
नव रिश्तों को कलियाँ जानो।
खिले कुसुम सुरभित चहुँ उपवन,
जीवन मधुरिम फलियाँ जानो।
त्याग शील विश्वास परस्पर,
स्वार्थ विरत दृढ़ रिश्ता जानो।
नाजुक हो नित भाव डोर मन,
दूरदृष्टि मति पलिता जानो।
करें समादर भाव अपर मन,
जो समक्ष उसको तुम जानो।
रख धीरज संयम साहस बल,
स्वाभिमान रिश्तें हैं जानो।
डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली