सावन - कह-मुकरी - मनीषा श्रीवास्तव

आवत देखो गरजत तड़कत,
डर जाए जियरा ये बरबस।
सावन में घिर-घिर करे पागल,
को सखि साजन; नहिं सखि बादल।

धानी रंग से मन भर जावे,
गोरी को सुन्दर रूप सजावे।
हरा भरा हो जी घर आँगन,
को सखि साजन; नहिं सखि सावन।

सावन में जब बदरा बरसे,
चातक दादुर पपीहा हरषे।
पंख पसार मचावै री शोर।
को सखि सावन; नहिं सखि मोर।

रंग दे मोरी हरी चुनरिया,
सावन की साँवरी बदरिया।
हर्षित कर बढ़ावे सखी वेग,
को सखि साजन; नहिं रंगरेज़।

मनीषा श्रीवास्तव - बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)

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