मैं तैयार हूँ - कविता - परमानन्द कुमार राय

1
मैं तैयार हूँ!
जग जीवन के झंझावात से,
मुश्किलों के महापाषाण से,

बाधाओं के व्यसन-व्यवधान से
लड़ने को मैं तैयार हूँ!

मुश्किलों से आगे और
जहाँ रचने को मैं तैयार हूँ!
अँधेरा घनघोर मिटाने को
उजियाली जीवन जीने को
मैं तैयार हूँ!
हाँ, मैं तैयार हूँ!!

दोस्तों से भी आगे,
मुश्किलों को चीरकर,
निकलने को मैं तैयार हूँ।
मैं तैयार हूँ!
हाँ, मैं तैयार हूँ!!

2
दुर्भाग्य के लकीरों को
कर्म के स्याही से बदलने को
बिलकुल, मैं तैयार हूँ!

जीवन फँसी मझधार में
तो क्या हुआ?
उपायों का पतवार लिए,
उबरने को मैं तैयार हूँ!
मैं तैयार हूँ!
हाँ, मैं तैयार हूँ!!

बाधाओं के व्यवधान से,
पत्थरों के प्रहार से ,
हो जाएँ लहू लुहान 
तो क्या हुआ ?
मैं अमृत सुधा पाने को
इस जंग से लड़ने को
बिल्कुल, मैं तैयार हूँ!
मैं तैयार हूँ!
हाँ, मैं तैयार हूँ!!

3
परिस्थितियाँ प्रतिकूल है!
जीत से बिल्कुल अनभिज्ञ,
हारना अनुकूल है!

जीत जश्न के लिए,
विष-विषमताओं से 
मैं लड़ने को तैयार हूँ!
मैं तैयार हूँ!
हाँ, मैं तैयार हूँ!!

हार में ही जीत है,
सिर्फ़ विचार टले नहीं,
हिमालय सा अडिग रहें।
ऐसा ही विचार है।।

बाधाओं के व्यवधान से, लड़ने को मैं तैयार हूँ!
मैं तैयार हूँ!
हाँ, मैं तैयार हूँ!!

4
कर्म पथ पर रुके नहीं,
हम कभी झुके नहीं,
सहस्र सरिता सी साहस भरें।
राह में बाधा जो मिले,
स्वीकार सब तोड़ते चलें।

मंज़िल मिलेंगे एक दिन विश्वास कर,
स्वागत के लिए मैं तैयार हूँ!
मैं तैयार हूँ!
हाँ, मैं तैयार हूँ!!

बाधाओं के व्यवधान से लड़ने को मैं तैयार हूँ!
मन में रहे विचार यही
दुनिया से आगे बढ़ने को 
मैं हर हाल में तैयार हूँ!
मैं तैयार हूँ!
हाँ, मैं तैयार हूँ!!

परमानंद कुमार राय - अंधराठाढी, मधुबनी (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos