संदेश
इंतज़ार - गीत - दीपक कुमार
बड़ी मुद्दत पे आए हो, ज़रा दीदार करने दो। ठहरो ज़रा कुछ पल, नज़र दो चार करने दो। कुछ दिन जो तुम ठहरो यहाँ, बातें पुरानी कर लें हम। हम …
क्या वह दोषी है? - लघुकथा - डॉ॰ सुनीता श्रीवास्तव
“अब जाकर घर आ रही हैं…!! तुम्हारे कारण माॅं चल बसी, एक भी फ़ोन नहीं उठाया तुमने?”- उत्तम (राशि का पति) भरी भीड़ में सबके सामने राशि पर …
कर्म-पथ पे चलना है तुझे - कविता - सागर 'नवोदित'
पथ नहीं अंजान वो, जिस पर चलना है तुझे, भरकर एक विश्वास नया, हर पल बढ़ना है तुझे। बना तलवार कलम को, पहन कवच ज्ञान का, फैला जो अंधकार यह…
पतंग की डोर - कविता - तेज नारायण राय
बचपन में पतंग उड़ाते जब कट जाती थी पतंग की डोर और जा गिरती थी गाँव की सीमा से दूर किसी पेड़ की फुनगी पर तब पतंग के पीछे दोस्तों …
सूरत में सीरत नहीं मिलती - कविता - निर्मल कुमार गुप्ता
सच है, सूरत में सीरत नहीं मिलती। सूरत कुछ और नज़र आती है, सीरत कुछ और नज़र आती है। बनावटी चेहरों की पहचान झलक जाती है। कुछ सूरत से सुन्द…
कॉलेज के दोस्त - कविता - अभिषेक शुक्ल
कॉलेज में वफ़ादार यार का मिल जाना ठीक-ठीक वैसा ही है! मरुस्थल में किसी प्यासे पथिक को पानी उपलब्ध हो जाने जैसा! ज़मीं नापते-नापते दम घु…
मानवता बेहाल - कविता - ममता शर्मा 'अंचल'
घर के पीछे आम हो, और द्वार पर नीम, एक वैद्य बन जाएगा, दूजा बने हकीम। पीपल की ममता मिले, औ बरगद की छाँव, सपने आएँ सगुन के, सुख से सोए ग…
तापमान - कविता - डॉ॰ सिराज
धरती जल रही है, गर्मी हदें पार कर रही हैं। मनुष्य ख़ुद को बचाने के उपाय तो ढूँढ़ लिया है, लेकिन प्रकृति को बचाने का विचार विलुप्त है। क…
मँझधार फँसी नैया - गीत - उमेश यादव
मँझधार फँसी नैया, उद्धार करा देना। जीवन की कश्ती को, प्रभु पार लगा देना॥ सुख-दुःख ही जीवन है, मन को समझाना है। संघर्ष भरा बीहड़ वन, …
संकटों के साधकों - कविता - मयंक द्विवेदी
हे संकटों के साधकों अब इन कंटकों को चाह लो समय दे रहा चुनौती जब कुंद को नयी धार दो वार पर अब वार हो और प्रयत्नों की बौछार हो गा रही ह…
ज्ञान दीन - घनाक्षरी छंद - महेश कुमार हरियाणवी
उसे घर से निकाला घर जिसने संभाला। पढ़े-लिखे बगुलों का काला किरदार है। माया जिन पे चढ़ादी देह अपनी लुटादी। बोलियाँ वे बोलते की पैसा सरदार…
स्वार्थी मनुष्य - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
मानव ने पूरी धरती पर, आधिपत्य है जमा लिया। पूरी पृथ्वी पर मानव ने, बस अपना घर बना लिया॥ यद्यपि ईश्वर ने मानव के– साथ और भी भेजे थे। पश…
पर्यावरण - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
चलो बचाएँ प्रकृति धरा को, वृक्षारोपण मिल साथ करें। बाढ़, भूकम्प तूफ़ाँ कहर ताप, पर्यावरण प्रदूषण मुक्त करें। हवा सलिल विषाक्त बह रह…
अहसास - कविता - सुनीता प्रशांत
छोड़ आई जो माँ की गली वो गली गुम गई है वो राह तकती दो आँखें हमेशा के लिए बंद हो गई हैं वो मोहल्ला भी नहीं रहा वो लोग भी न जाने कहाँ ग…
किसी पुस्तक के किसी पन्ने पर - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
किसी पुस्तक के किसी पन्ने पर, दिखाई दिया, एक कतरन नुमा काग़ज़। लिखा था कल क्या क्या, सामान लाना है, घर चलाने को। शायद जेब इसकी इजाज़त नह…
क्या तुम नहीं जानते - कविता - बिंदेश कुमार झा
क्या तुम नहीं जानते पर्वतों के पीर को, व्याकुल संसार के संपन्न तस्वीर को। क्या तुम नहीं जानते जलती हवा के शरीर को, जो दौड़ रहा है गाड़ि…
संबंधों की सार्थकता - कविता - प्रवीन 'पथिक'
कथा की प्रासंगिकता, कथ्य के प्रभावशाली होेने से है। शब्दों का जीवंतता, गहरे भाव बोध से होता है। जीवन की अर्थग्राह्यता, मुक्ति की दिशा …
चल मोहब्बत लिखते हैं - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
एहसास के पन्ने पर चल मोहब्बत लिखते हैं और बनाते हैं कुछ नोट काग़ज़ के ख़रीद फ़रोख़्त के इस मौसमी दौर में मैं तुझे ख़रीदता हूँ तूँ मुझे …
सुनो तनिक राधा सखी - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सुनो तनिक राधा सखी, लाओ मधुरिम हाथ। गाओ मुरली आज तू, मैं हूँ गैया साथ॥ लीलाधर यशुमति लला, समझ रही तुझ चाल। मैं तेरी जीवन सखी, नहीं …
संग चलें हम बुद्ध हो जाएँ - गीत - उमेश यादव
उर में करुणा, प्रेम मगन मन, तन से हम सेवा कर पाएँ। संग चलें हम बुद्ध हो जाएँ, संग चलें हम बुद्ध हो जाएँ॥ भोग विलासिता को त्यागना, जीवन…
मज़दूर - कविता - राज कुमार कौंडल
हर सुबह उठकर जीवन की तलाश में जाता हूँ, कुदाल फावड़ा कस्सी बेलचा हैं मेरे संगी साथी, ये मेरे संग और मैं इनके संग प्रीत निभाता हूँ। धोत…
हे राम! तुम्हें उठना होगा - कविता - तेज प्रकाश पांडे
इस कुरूक्षेत्र के प्रांगण में, पांचजन्य के वादन में। इस धर्मक्षेत्र के संगम में, इस कर्मभूमि के आँगन में। उस पांचाली के आँचल में, वृको…
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