अहसास - कविता - सुनीता प्रशांत

अहसास - कविता - सुनीता प्रशांत | Hindi Kavita - Ahsaas - Sunita Prasant. Hindi Poem On Memories Of Mother. माँ की याद पर कविता
छोड़ आई जो माँ की गली
वो गली गुम गई है
वो राह तकती दो आँखें
हमेशा के लिए बंद हो गई हैं 
वो मोहल्ला भी नहीं रहा
वो लोग भी न जाने कहाँ गए
कुछ वक्त की भेंट चढ़ गए
कुछ के मुखौटे बदल गए
बाज़ार भरा पड़ा था
पर मेरा कुछ सामान न था
बस थी तो माँ की गंध
था वही अहसास
उस अहसास को लपेट कर
उस गंध को साँसों में भरकर
समेट लिया सब मैंने 
जो था मेरे ही अपने पास 
जीने के लिए था वो पर्याप्त।

सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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