संदेश
जीवन सुख दुख का गुलदस्ता - ग़ज़ल - मंजु यादव 'ग्रामीण'
बीते दर्द, छुपाकर देखे, ज़ख्म सभी, सहलाकर देखे। खुशियों की, कलियाँ खिल आईं, ग़म की धूप, नहाकर देखे। खोटा सिक्का भी, सोने सा, कोई उसे, तप…
वो लड़की - कविता - प्रशान्त 'अरहत'
वो लड़की जिससे मेरे दिल का था कारोबार चला करता। वो लड़की जिससे मिलकर मन उपवन मेरा खिला करता। वो लड़की जब कुछ कहती तो बातों से फूल बरसते थ…
आज़ादी - कविता - नूर फातिमा खातून "नूरी"
अंगुली पकड़कर गर्दन पकड़ा था अंग्रेजों ने ग़ुलामी की ज़ंजीर में जकड़ा था अंग्रेजों ने। राजपूत, नवाबों को आपस में लड़ाया था, हिन्दू मुस्ल…
पुराने संस्कार - लघुकथा - समुन्द्र सिंह पंवार
दादी जी के चेहरे की दिनों दिन बढ़ती चमक देख कर सब घर वाले हैरान हैं पर समझ नहीं पा रहे हैं और ना ही पूछने की हिम्मत कर पा रहे हैं। क्यो…
सुभाष: भारत माँ का लाड़ला - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सदा अथक संघर्ष ने, माँ भारत के त्राण। आत्मबल विश्वास दे, कर सुभाष निर्माण।।१।। भारत माँ का लाडला, महावीर सम पार्थ। मेधावी था अतिप्र…
आप सुनो तो - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
आप सुनो तो तान छेड़ दूँ, मन के गीत सुनाने को। रूह हमारी भटक रही थी, दिल का हाल बताने को। बंजारों से दिन थे मेरे, जोगन जैसी थी रातें। अब…
बसंत - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
रुसवाई का छोड़ो ख़्याल री सजनी बसंत ऋतु जो आयी। मद मस्त सुगंध ले आम बोराये ली रब ने ली अंगड़ाई। फूला काँस फूल गए सरसों पलास। डाल से गिरता…
२६ जनवरी आई - गीत - रमाकांत सोनी
छब्बीस जनवरी आई, छब्बीस जनवरी आई, आई होठों पर मुस्कान, खुशियों की बारिश लाई। गणतंत्र दिवस आया, मनाये देश अपना सारा, लहराए तिरंगा शा…
तिरंगा - कविता - अंकुर सिंह
तिरंगा है हमारी जान, कहलाता देश की शान। तीन रंगों से बना तिरंगा, बढ़ता हम सब की मान।। केसरिया रंग साहस देता, श्वेत रंग शांति दिखलाता। …
रहस्य को गूढ़ रहस्य तुम बनाए रखना - सजल - विकाश बैनीवाल
रहस्य को गूढ रहस्य तुम बनाए रखना, जितना छुप सके मुझसे छुपाए रखना। भनक ना लग जाए मुझे कही से भी, गुमराही का फ़र्ज़ तुम निभाए रखना। जब तक …
क्योंकि वो एक लड़की थी - कविता - विजय गोदारा गांधी
वो जन्म से पहले ही मार दी गई, क्योंकि वो एक लड़की थी। ज़िंदगी जीने की तमन्ना उसकी भी बहुत थी, मगर किसी ने उसे जिंदगी दी ही नही। पढ़-लिखकर…
कोरे काग़ज़ और क़लम - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मैं काग़ज़ के कोरे पन्नों पर, अविरत अन्तर्मन भाव लिखती हूँ, जन ज़ज़्बातों की मालाओं को, कोरे काग़ज़ पर रव गढ़ती हू…
मधुशाला- एक उन्माद - कविता - कर्मवीर सिरोवा
गया एक बार मैं अपने सपने का इंटरव्यू देने, उस रास्ते बीच मँझधार नज़र आई मधुशाला अपने, जिसे देख ठिठक गए हर किसी के सपने, मुझें लगा अजीब,…
गहराई ज़िंदगी की - कविता - सुनील माहेश्वरी
ज़िंदगी खेल नहीं है, जितना सरल दिखती है, उतनी ही कठिन, प्रतीत होती है। हर वक़्त दिखता, जो गहरा समंदर है, कभी उलझो तो, कहानी का फेर है ये…
सियासत बाँटती रही मरहम - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
हर बार रहनुमा तेरा झूटा निकला! काग़ज़ काग़ज़ कोरा वादा निकला! सियासत बाँटती रही मरहम मगर, हर ज़ख्म अवाम का ताज़ा निकला! निकल पाई जिसके दर पे…
बेचारे विप्र भंगड़ी लाल - हास्य संस्मरण - सुषमा दीक्षित शुक्ला
बात उन दिनों की है जब मैं अपने वकालत द्वितीय वर्ष की परीक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में समाप्त हो जाने पर अवकाश के समय होस्टल से अपने गाँव…
मेहरबाँ कौन हुए - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण
हम तो थे तैयार हर वक़्त हर डगर के लिये थे अकेले ही उस रोज़ तन्हा सफ़र के लिये। तूफाँ जो आया, सितारा वो गर्दिश में खो गया अफ़सोस ये सदा रहे…
मुझे बहुत प्यार करती है - कविता - अमित अग्रवाल
मुझको पाकर भी मुझको खोने से डरती है, हाँ सच है वो मुझे बहुत प्यार करती है। ख़ुद की परवाह भूल सिर्फ़ मेरे ही बारे में सोचा करती है, हाँ स…
माँ हूँ - कविता - राम प्रसाद आर्य 'रमेश'
सर्दी सता रही है बेटा, आ, आँचल में छुप जा। माँ हूँ, रो मत, ले तन ढक ले, अब तो तू चुप जा।। एक छोर निज सर ढक लूँ, दूजे तेरे तन को। मा…
मौत और ज़िन्दगी - गीत - सतीश मापतपुरी
नाश और विध्वंस ही निर्माण का आरम्भ है। मौत ही तो ज़िन्दगी का इक नया प्रारम्भ है। हम खिलौना हैं किसी के हाथ का। छूटता जो ग़म न कर उस साथ …
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