बीते दर्द, छुपाकर देखे,
ज़ख्म सभी, सहलाकर देखे।
खुशियों की, कलियाँ खिल आईं,
ग़म की धूप, नहाकर देखे।
खोटा सिक्का भी, सोने सा,
कोई उसे, तपाकर देखे।
कुछ लम्हे, जीवन भर कसके,
गीत ग़ज़ल, सब गाकर देखे।
कदम कदम, आँसू और आहें,
ख़ुदा ज़मीं पर, आकर देखे।
सच की राहें, इतने काँटे,
मुश्किल पाँव, बचाकर देखे।
जीवन सुख दुख, का गुलदस्ता,
दिल से उसे, सजाकर देखे।
जिसपे जितना, करो भरोसा,
उतना वो, आज़माकर देखे।
तूफ़ानों की, नज्र हुए सब,
जितने ख़्वाब, सजाकर देखे।
हार अगर मंज़ूर, ना तुझको,
फिर क्यूँ दाँव, लगाकर देखे।
आईने की, फ़ितरत देखो,
सबको ऐब, दिखाकर देखे।।
मंजु यादव 'ग्रामीण' - आगरा (उत्तर प्रदेश)