वो लड़की - कविता - प्रशान्त 'अरहत'

वो लड़की जिससे मेरे दिल का
था कारोबार चला करता।
वो लड़की जिससे मिलकर मन
उपवन मेरा खिला करता।
वो लड़की जब कुछ कहती तो
बातों से फूल बरसते थे।
वो लड़की जिसकी बातें सुनने को
मेरे दोस्त सभी तरसते थे।
वो लड़की जो नज़रों में मेरी
सुंदरता की प्रति मूरत थी।
वो लड़की थोड़ी सी चंचल थी
जिसकी भोली सी सूरत थी।

वो लड़की जिसकी यादों में मैं
अक़्सर खोया रहता हूँ।
वो लड़की जिसको अब अपनी
कविताओं में मैं लिखता हूँ।
वो लड़की शोख़ हवा सी थी
कैसे बंदिशों में रह सकती।
वो लड़की मुझको कैसे बिन
याद किए ही रह सकती।
वो लड़की जिसके बिन अब
मन उपवन सहरा लगता है।
वो लड़की जिसे प्रशान्त ये
महासागर से गहरा लगता है।
वो लड़की जिसके साथ न जाने
कितना समय बिताया है।
वो लड़की जिसकी यादों ने फिर
से इक बार सताया है।

वो लड़की जिससे मिलकर
हम घण्टों बातें करते थे।
वो लड़की जिससे मिलकर
घण्टे मिनटों से लगते थे।
वो लड़की जिससे मिलते ही ये
दुनिया प्यारी लगती थी।
वो लड़की जिसको ये दुनिया
सपनों की क्यारी लगती थी।
वो लड़की जो ये कहती थी मैं
शहरे अदब में रहती हूँ।
वो लड़की जो ये कहती थी मैं
प्यार तुम्हीं से करती हूँ।

प्रशान्त 'अरहत' - शाहाबाद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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