हम तो थे तैयार हर वक़्त हर डगर के लिये
थे अकेले ही उस रोज़ तन्हा सफ़र के लिये।
तूफाँ जो आया, सितारा वो गर्दिश में खो गया
अफ़सोस ये सदा रहेगा ज़िंदगी भर के लिए।
रात जो सिसकते गई गुज़र, मेहरबाँ कौन हुए
बहाते हैं आँसू, किसको दोष दें क़हर के लिये।
खुशियों में वे तो सरोबार थे मेरे साथ हर पल
आज हैं अजनबी हम अपने ही शहर के लिये।
डर के बहुत साये में गुज़रे, वे ग़म के दिन कई
ज़िंदा हुआ 'निर्वाण' चल पड़ा सफ़र के लिये।
श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)