बेचारे विप्र भंगड़ी लाल - हास्य संस्मरण - सुषमा दीक्षित शुक्ला

बात उन दिनों की है जब मैं अपने वकालत द्वितीय वर्ष की परीक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में समाप्त हो जाने पर अवकाश के समय होस्टल से अपने गाँव कफारा गयी हुई थी। तभी यह दिलचस्प वाकया हमारे गाँव में घटित हुआ।उन दिनों हमारे गाँव में वैशाखी का बहुत विशाल प्रसिद्ध मेला लगा हुआ था। तभी मेले के कारण एक पंडित जी सुअवसर में हमारे गाँव में प्रति वर्ष की भांति बैसाखी मेले के समय पुनः पधारें। वह भाँग खाने के बहुत शौकीन थे इसलिए लोग उन्हें प्यार से विप्र भंगड़ी लाल कह कर पुकारते थे।

उस समय गाँव में शिव मंदिर के समीप ही मेला लगा हुआ था। लोग दूर-दूर से वहाँ भोलेनाथ पर सत्तू चढ़ाने आया करते थे, तो भोलेनाथ का चढ़ा हुआ सत्तू का कुछ भाग पुजारी लोग विप्र भंंगड़ी लाल को भी दे देते थे, क्योंकि विप्र जी शाम को बहुत सुंदर-सुंदर लतीफे सुना सुना कर वहाँ के लोगों का मनोरंजन किया करते थे।

इस बार बैसाखी में सत्तू बहुत चढ़ा था तो भंगड़ी लाल जी को भी सत्तू बहुत मात्रा में प्राप्त हो गया। उन्होंने मारे खुशी के इस बार और ज्यादा भाँग पी लिया और सो गए। उनके बगल ही में सत्तू की मटकी भरी रखी थी और कुत्तों से बचाने के लिए उन्होंने एक डंडा रख रखा था।

सोते में विप्र भंगड़ी लाल जी ने सपना देखा, कि वह सत्तू बेचकर बकरी लाए हैं और उन बकरियों को बेचकर मुनाफ़े से फिर गाय, भैंस खरीदें हैं फिर इसी मुनाफ़े के क्रम में वह काफ़ी खेत, बाग़ खरीदे, घर बनवाये काफ़ी तरक्की की है।आलीशान घर और खूबसूरत घरवाली भी सपने में ही हासिल हो गयी, साथ ही काफ़ी ज़मीन ज़ायदाद भी बना ली। सपने में ही सुंदर घुंघराले बालों बालों वाला बेटा खेलने लगा, जो खिलौनों के खो जाने से मचल कर रोता है।लेकिन भंगड़ी लाल की काल्पनिक स्वप्निल सुंदरी पत्नी उसके खिलौनों को नहीं ढूंढती, बस अपने सिंगार में लगी है  सो भंगड़ी लाल को पत्नी पर बहुत गुस्सा आया और वह सपने में ही अपनी पत्नी को पास रखा डंडा उठाकर जो मारते हैं। तो वह डंडा वास्तव में कुत्तों से बचाने वाला डंडा सत्तू की मटकी पर पटक देते हैं, मटकी फूट गयी और उसके टूटने की आवाज से भंगड़ी लाल का सपना टूट जाता है सारा सत्तू जमीन में घास फूस पर बिखर के गिर जाता है। फ़िर क्या बेचारे भंंगड़ी लाल चिल्लाते हैं, हाय मेरा सत्तू, हाय मेरी बीवी, हाय मेरा बेटा, हाय मेरी बकरी हाय मेरी गाय, अब सब कहाँ से पाऊँगा। ये अद्भुत स्वप्न वाला सारा वाकया बाद में भंगड़ी लाल जी ने मेरे घर आकर सुनाया।
हम सब लोग हँसते हँसते लोटपोट हो गए थे।
वे बेचारे भगड़ी लाल काश इतना भाँग खुशी से पगला  कर ना पिए होते।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos