संदेश
बेटी - कविता - नौशीन परवीन
माँ, मुझे कोख में ही रख लो ना! लगता है डर इस बेरहम दुनिया से, मुझे कहीं छुपा लो ना माँ! मैं आना तो चाहतीं हूँ इस दुनिया में पर कही…
बेटी - कविता - कुशाल तिवारी
रोज़ ख़बर सुन लेता हूँ टीवी और अख़बारों में। बेटी की इज़्ज़त उलझी है, तर्क वितर्क विचारों में।। कितने केस सुने मैंने है और कितनों को सज़ा मि…
उफ़ ये बेटियाँ - गीत - शमा परवीन
उफ़ ये बेटियाँ, मासूम सी ये बच्चियाँ, आरज़ूओं से दिलेर हैं, समाज से तंग ये बेटियाँ, गुलाब की ये पंखुड़ियाँ, उफ़ ये बेटियाँ। आँसूओं की …
बेटियाँ - कविता - आर सी यादव
अंकुरित होते ही कोख में मुस्कुराती है बेटियाँ। माँ के मन के अनुभवों से सुख का एहसास कराती हैं बेटियाँ।। माँ की पीड़ा को समझती सहमती हर…
बेटियों की पीड़ा - कविता - संजय राजभर "समित"
मैं डरती नही हूँ, हिंसक पशु - पक्षियों से भूत प्रेत से अथक परिश्रम से, हाँ मैं डरती हूँ, मानव लिबास में छिपे नरभक्षियों से, मैं कहाँ…
बेटी की विदाई - गीत - महेश "अनजाना"
ओ लाडली तू बाबुल की गलियाँ छोड़ चली। बचपन जिसके संग गुजरा वो सखियाँ छोड़ चली। माँ की ममता, पिता का दुलार भैया की रानी बहना। ह…
मैं खुशी के पल जी लूँ - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
(एक बेटी की माँ से अपेक्षाएं) मैं सदा प्रसन्न रहूँ, माँ तेरी गोदी में खेलूँ। तेरा आंचल पकड़कर, मैं सदा तेरे साथ फिरूँ। तेरे हाथ की…
बेटी - कविता - संजय राजभर "समित"
माँ!! यश, अपयश कैसा? मेरी प्राण बचा मुझे पार लगा तेरी बगिया की फूल नही मज़बूत हथियार बनूँगी। तात उदास मत बैठो मुझे ताकत दो, दह…
फ़र्क़ - कविता - डॉ. कुमार विनोद
लड़कियों के पैदा होने व बाप के लिए चिंता का बीज बोनेकी वजह समाज द्वारा खाद पानी दहेज के रुप में जड़ों में डाला जाना है क्योंकि जड़…
ये कैसा अपनापन है - कविता - राम प्रसाद आर्य
कौन कहता है कि, बेटी तो पराया धन है? पूछो उससे कि तेरा, ये कैसा अपनापन है।। पूछो उससे कि.... अपनी जनी को ही तू पराया कैसे कहता है? क…
निश्छल मन - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
मैं अबोध नादान हूँ तभी तो खुशहाल हूँ, छल, प्रपंच, ईर्ष्या, द्वेष से दूर अपने में मस्त महकती, चहकती हूँ। बस आप सब से विनती है मैं जैसी …
कुछ करना चाहूँ - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
बालिका शिक्षा को समर्पित रचना मैं अपनी उम्मीदों को पँख लगाकर , बहुत ऊँची उड़ान भरना चाहूँ । इस अनमोल नारी (बालिका) जीवन में , मैं पढ़…
मर गयी है इंसानियत - कविता - विजय कुमार निश्चल
मर गयी है इंसानियत फैल रही है हैवानियत मासूम बच्चियों से बलात्कार खो रही है आदमियत बेटियाँ घर से बाहर निकलते डरती है जैसे तैसे वहशी बु…
हो बेटी निर्बाध - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
देखो कलियुग कालिमा, फैला है व्यभिचार। निशिदिन मरती बेटियाँ, लाचारी सरकार।।१।। लव ज़िहाद के नाम पर, परिवर्तन नित धर्म। फाँस रहे मासू…
रक्तबीज - लघुकथा - सुधीर श्रीवास्तव
आज मेरी पत्नी बहुत परेशान थी। इन दिनों अखबारों में महिलाओं के साथ हो रही घटनाओं की खबरों नें उसे डरा दिया है, तभी तो वह बेटी को स्कूल …
कब तक ज़ुल्म सहेगी बेटी - कविता - आशाराम मीणा
पूछ रही हैं घर की बाला, बापू एक उलाहना है। मिटे अंधेरा जग का सारा, ऐसा दीप जलाना है।। बेटा बेटी समकोटीय, सबको यह बतलाना है। मरे खोख मे…
औपचारिकता - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
नवरात्रों में माँ का दरबार सजेगा, माँ के नवरूपों की पूजा होगी, धूप दीप आरती होगी हर ओर नया उल्लास होगा। चारों ओर माँ के जयकारे गूँजेंग…
मैं अबला नहीं - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
अब वह समय नहीं रहा अब मैं अबला नहीं सबला हो गई हूँ। वो समय गुजर गया जब मैं छुईमुई सी हर बात में घबरा जाती थी, डर जाती थी, आज मेरे हौ…
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
अजन्मी बेटी, करती पुकार। मत करो, मेरे आस्तित्व का तिरस्कार।। मैं भी तो हूँ, तेरी कल्पना। दूँगी बना, तेरा जीवन अल्पना।। दे दो मेरे, अस…
मौन - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
आवाज नहीं कोई रहा उठा, है किसी के साथ नहीं घटा? यह समाज भी सह रहा सभी , बेटियां बहुएं सुरक्षित नहीं।। मनुष्यता अब खो गई कहीं, भीष्म से…