ओ लाडली तू
बाबुल की गलियाँ छोड़ चली।
बचपन जिसके
संग गुजरा
वो सखियाँ छोड़ चली।
माँ की ममता,
पिता का दुलार
भैया की रानी बहना।
हँसते हँसाते,
रोते रूलाते
छूट रहा घर अँगना।
जिस चमन का
फूल है बन्नो
वो बगिया छोड़ चली।
बचपन जिसके
संग गुजरा
वो सखियाँ छोड़ चली।
बाबुल की जान है तू।
सबका अभिमान है तू।
देते हैं तुमको दुआएँ
सखियाँ की मुस्कान है तू।
पिया संग होके
अपनों से नज़रिया मोड़ चली।
बचपन जिसके
संग गुजरा
वो सखियाँ छोड़ चली।
नाजों में पली,
तू दुल्हन बनी
द्वार पे डोली आई।
दर्द के आँसू
पी पी कर
सब दे रहे विदाई।
प्यार भरी
साजन की
लाल चुनरिया ओढ़ चली।
बचपन जिसके
संग गुजरा
वो सखियाँ छोड़ चली।
दुनियाँ का दस्तूर है
इसे न कोई तोड़ पायेगा।
बेटी अमानत होती है
उसे ना रोक पायेगा।
है विदाई की घड़ी
भरके अँखियाँ लोर चली।
बचपन जिसके
संग गुजरा
वो सखियाँ छोड़ चली।
ससुराल तुम्हारा
अब घर है अपना
बाबुल का घर बसेरा है।
जिस घर गई
वहीं है रहना
ये पल भर का डेरा है।
रस्में निभाके,
पराई होके
नए रिश्तों में जोड़ चली।
बचपन जिसके
संग गुजरा
वो सखियां छोड़ चली।
महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)