बेटी - कविता - कुशाल तिवारी

रोज़ ख़बर सुन लेता हूँ टीवी और अख़बारों में।
बेटी की इज़्ज़त उलझी है, तर्क वितर्क विचारों में।।
कितने केस सुने मैंने है और कितनों को सज़ा मिली।
बेटी के परिवार है रोते और दुष्टों को मज़ा मिली।।
अब कोई उम्मीद ना रखना अपने मन में धैर्य रखो।
अपने पास सदा अब बेटी छुरी, कटारी, शौर्य रखो।।
और ज़रूरत पड़े यदि तो अपना रूप दिखा देना।
बेटी क्या होती हैं जग में विश्व को तुम बतला देना।।
गर ज़्यादा अन्याय बढ़े तो रण की देवी बन जाना।
और ज़रूरत पड़ी अगर तो फूलन देवी बन जाना।।
बतला देना दुनियाँ को ना बेटी कोई खिलौना है।
नारीशक्ति के आगे तो पूरा विश्व ही बौना है।।
ऐसा रूप रखे गर बेटी न्याय वहीं हो जाएगा।
कोई भी अपने मन फिर ना बलात्कार को लाएगा।।

कुशाल तिवारी - छतरपुर (मध्यप्रदेश)

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