बालिका शिक्षा को समर्पित रचना
मैं अपनी उम्मीदों को पँख लगाकर ,
बहुत ऊँची उड़ान भरना चाहूँ ।
इस अनमोल नारी (बालिका) जीवन में ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।
मैं सारे बाधक बंधनों को तोड़कर ,
अपना स्वच्छंद जीवन जीना चाहूँ ।
अबला से सबला बनकर रहूँ ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।
मैं मेहनत के गहरे रंग जमाकर ,
अपनी योग्यताओं में मजबूत बन जाऊँ ।
नज़र नारी पर कोई ना उठ सकें ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।
मैं हर बात में मोहताज़ न रहकर ,
स्व-विवेक से निर्णय लेना चाहूँ ।
अपनी काबिलियत का लोहा मनवाऊँ ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।
मैं अपने सोए हुएं ज़मीर को जगाकर ,
हर जरूरतमंद का सहारा बन जाऊँ ।
मुझे मनचाहा मुकाम मिल सकें ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।
मैं जटिल काम करूँ आगे बढ़कर ,
इतनी मजबूत कर दूँ अपनी बाहूँ ।
"कल्याण" सब नर-नारी का कर ,
मैं पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूँ ।
कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)