बेटी - कविता - नौशीन परवीन

माँ, मुझे कोख में ही 
रख लो ना!
लगता है डर इस 
बेरहम दुनिया से,
मुझे कहीं छुपा 
लो ना माँ!
मैं आना तो 
चाहतीं हूँ
इस दुनिया में
पर कहीं निर्भया,
या मनीषा जैसे 
हो ना जाए
कहीं मेरा भी रेप।
क्या तूने सुनी है
उन बेटियों की 
चीखों को 
उनके आर्तनाद को
उनकी भावनाओं को?
तुम मुझे
ऐसी हैवानियत से
बचा लेना माँ,
तुम मुझे कहीं
छुपा लेना 
माँ
हे माँ।

नौशीन परवीन - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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