औपचारिकता - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

नवरात्रों में
माँ का दरबार सजेगा,
माँ के नवरूपों की पूजा होगी,
धूप दीप आरती होगी
हर ओर नया उल्लास होगा।
चारों ओर माँ के जयकारे गूँजेंगे
माँ की चौकियां सजेंगी
जागरण भी होंगे,
माँ को मनाने के सबके
अपने अपने भाव होंगे।
मगर इन सबके बीच भी
बेटियों पर अत्याचार होंगें
उनकी अस्मत लूटी जायेगी
उनकी लाचारी की कहानी
फिर हमें धिक्कारेगी।
हम फिर मोमबत्तियां जलायेंगे
संवेदना के भाव दर्शाएंगे,
पर कुछ करने का भाव
दृढ़ प्रतिज्ञ होकर नहीं दिखायेंगे।
नवरात्रों में बेटियों को पूजेंगे,
चरण पखारेंगे,माथे लगाएंगे,
टीका करेंगे, माला पहनाएंगे
आशीर्वाद की लालसा में
झोलियाँ फैलाएंगे, 
अगले वर्ष का आमंत्रण भी
आज ही पकड़ायेंगे।
देवी माँ खूब रिझायेंगे
मगर ये सब करके भी हम
बेटी बहन की सुरक्षा, स्वाभिमान का
बस!संकल्प नहीं कर पायेंगे,
देवी माँ का पूजन करने की
हर बार की तरह इस बार भी
मात्र औपचारिकता निभायेंगे।
आपनी तसल्ली के लिए बस
देवी माँ के चरणों में हाजिरी लगायेंगे
जय माता दी जय माता दी को
शोर बस गुँजाएंगे।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos