संदेश
बसंत - कविता - अनिल भूषण मिश्र
हे ऋतुराज प्रकृति भूषण बसंत! तुम लाए धरा पर ख़ुशियाँ अनंत। बागों में अमराई महकी, डालों पर चिड़ियाँ चहकी। सज गया है धरती का कोना-कोना, खे…
रंगीन बसंत - कविता - डाॅ. वाणी बरठाकुर "विभा"
अब चारों ओर महक रहा है आया रंगीन बसंत बसंती टगर फूल खुश्बू हवा के संग गगन को चूम रहा बरदैचिला बावली सी उड़ कर महकाती गई बिखेरकर …
उमंग - कविता - रमाकांत सोनी
चंचल मन हिलोरे लेता, उमंग भरी बाग़ानों में। पीली सरसों ओढ़े वसुंधरा, सज रही नए परिधानों में।। मादक गंध सुवाशित हो, बहती मधुर बयार यहाँ…
बसंत - कविता - स्मृति चौधरी
नई उमंग, सौंदर्य अनुपम। देखो आया, प्रकृति का उपहार बसंत।। बहे चंचल ध्वनि, पूरवा में कल कल तरंग, सुगंध बयार संग, हर्षित हर घर आंगन। मिट…
आश्वासन का वसंत - कविता - विनय "विनम्र"
मुझे आश्वासन में मत बाधों बस धीरे-धीरे चलनें दो, सागर से निर्मित नमक नहीं हूँ, धीरे-धीरे गलने दो। तुम वसंत में नव पल्लव के गीत ग़ज़ल के …
आज बसंत की छाई लाली - गीत - बासुदेव अग्रवाल "नमन"
आज बसंत की छाई लाली, बाग़ों में छाई खुशियाली, आज बसंत की छाई लाली।। वृक्ष वृक्ष में आज एक नूतन है आभा आयी। बीत गयी पतझड़ की उनकी वह दु…
अब पहले जैसा कहाँ बसंत - गीत - रमाकांत सोनी
मन में उमंग उठती कहाँ अब, बहती कहाँ भावनाएँ अनंत। प्रेम भरी पुरवाई खो गई, अब पहले जैसा कहाँ बसंत।। रिश्तो में कड़वाहट भर गई, पीपल भी …
बसंत एक नज़रिए अनेक - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
बसंत का नाम आते ही ज़ेहन में उभरते हैं बसन्त ऋतु के कई चेहरे कई रंग, बस निर्भर करता है लोगों का अलग अलग नज़रिए से मधुमास को आत्मसात करना…
आ गया है बसंत - कविता - जितेन्द्र कुमार
प्रकृति कर ली है श्रृंगार, सर्वत्र छा गया है बहार, अवनि है बन-ठन तैयार, कर रहा रूह को इज़हार, ठिठुरन का हो गया अंत, आ गया है बसंत... मल…
मृदुल वसंत देता खुशी अनंत - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मृदुल वसंत देता खुशी अनंत, मुकलित रसाल सुरभित दिग्दिगन्त, अरुणिम प्रभात नवपल्लव निकुंज, पुष्पित पराग पुष्प महकता है। चहुँदिशि निर्मल भ…
निराला का वसंत - कविता - विनय "विनम्र"
रम रहा कौन था काल शिखर के मस्तक पर, नव बसन्त पल्लव गुंजन के मधुमय सा स्वर, कलुष दंड को भेद तिमीर को विच्छेदित कर, अरुणोदय से अंतस भर …
बसन्त की सौग़ात - कविता - रमेश कुमार सोनी
शर्माते खड़े आम्र कुँज में कोयली की मधुर तान सुन बाग-बगीचों की रौनकें जवाँ हुईं पलाश दहकने को तैयार होने लगे पुरवाई ने संदेश दिया कि…
वसंत पंचमी - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
हरियाली मन में है छाई, सुंदर सुमन ने सुगंध उड़ाई। हृदय प्रफुल्लित खिल-खिल जाएँ, मस्ती में गीत मल्हार सब गाएँ। प्रकृति नए-नए रूप दिखाएँ,…
बसंत ऋतु - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
सौंदर्यवान प्रकृति नई पुष्प सुसज्जित धरा हुई, चढ़कर अमर सज्जित हुए ईश्वर के चरणों मे जब जब, तब अमर बेल बढ़ती गई धरा पे जब हुआ आगमन, ब…
बसंत - हाइकु - रमेश कुमार सोनी
१ माली उठाते बसंत के नखरे भौंरें ठुमके। २ बासंती मेला फल-फूल, रंगों का रेलमपेला। ३ फूल ध्वजा ले मौसम का चितेरा बसंत आते। ४ बागों के…
पवन बसन्ती - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ये पवन बसन्ती मतवाली, फागुन आया पीत बसन। राग रंग कुछ मुझे न भाता, जब से मथुरा गया किशन। सपना सा हो गया सभी कुछ, हुई कहानी सी बातें। रह…
प्रकृति - गीत - संजय राजभर "समित"
हरे-हरे औ' पीले-पीले, उपवन सारा अलंकृत है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है।। मस्त मगन हो बैठी कोयल, मधुरिम कंठ अलाप …
बसंत - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
रुसवाई का छोड़ो ख़्याल री सजनी बसंत ऋतु जो आयी। मद मस्त सुगंध ले आम बोराये ली रब ने ली अंगड़ाई। फूला काँस फूल गए सरसों पलास। डाल से गिरता…
बसंत - कविता - अनिल बेधड़क
सूखे पत्ते सूखी डाली, फल विहीन कैसी हरियाली। कलियाँ सूख गईं डालो पर, आँसू फूलों के गालों पर। फिर भी जश्न मनाता माली, खुशियाँ भी लगती ह…