मृदुल वसंत देता खुशी अनंत - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

मृदुल वसंत देता खुशी अनंत,
मुकलित रसाल सुरभित दिग्दिगन्त,
अरुणिम प्रभात नवपल्लव निकुंज,
पुष्पित पराग पुष्प महकता है।

चहुँदिशि निर्मल भू अरुणाभ मुदित,
नव आशकिरण सब प्राणी हर्षित,
बन पुरुषार्थ सार्थवाहक सत्पथ,
दिग्दर्शक वसन्त बन जाता है।

सुष्मित हरित भरित सुनहर वसंत,
पीली कलसी लखि मलयज मतंग,
मदमत्त मनोहर मृदु पंचम स्वर,
कोकिल वृन्द गान मन भाता है।

बहुरंग विविध नवकुसुमित कानन,
देख वसन्त मधुप अस्मित आनन,
मकरन्द मधुर रस मदमत्त मधुप,
मधुर गूंज निरत मंडराता है।

निर्मल सरित सलिल कलकल छलछल,
चहुँओर निनादित पशु सुन्दर रव,
सतरंग मुदित रंजित भूतल नभ,
स्वागत वसंत विहग चहकता है।    

वसन्त पंचमी शारदा पावन,  
सुबुद्धि विवेक माँ विद्याराधन,
सतरंगी समरस होली उत्सव,
मन  फागुन बहार छा जाता है।

मौनी पुण्य अमावस गंगा जल,
माघमास कुंभस्नान मन निश्छल,
हो चतुर्दशी नर्क निवारण व्रत,
ऋतुराज वसन्त जब आता है।

समुधुर वसन्त सुन कलरव विहंग,
रोमांचित तन मन प्रिययुगल मिलन,
कोकिलगान श्रवित यौवन तरंग,
सागर प्रीति सलिल लहराती हैं। 

मधुरिम माधव मन स्वागत वसन्त, 
अभिनन्दन सुखमय आनंद मगन,
नव राष्ट्र प्रगति सुख चहुँ कीर्ति धवल,
अनंत जीवन खुशियाँ छाती हैं।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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