उमंग - कविता - रमाकांत सोनी

चंचल मन हिलोरे लेता, उमंग भरी बाग़ानों में। 
पीली सरसों ओढ़े वसुंधरा, सज रही नए परिधानों में।।

मादक गंध सुवाशित हो, बहती मधुर बयार यहाँ। 
मधुकर गुंजन पुष्प खिले, बसंत की बहार यहाँ।।

गाँव गाँव चौपालों पर, मधुर बज रही शहनाई है।
अलगोज़ों पर झूम के नाचे, देखो लोग लुगाई है।। 

मदमाती बयार वासंती, मन में हर्ष जगाती है। 
हरियाली से लदी धरा, कोयल कूक सुनाती है।। 

मन मयूरा नाचे मधुबन, सरिताए इठलाती सी। 
गाँव की गौरी मधुवन में, चलती बलखाती सी।। 

चहुंओर सुंदर नज़ारे, कुदरत खेल दिखाती है। 
तितली भंवरे खिलती कलियाँ, बागों को महकाती है।।
 
सौंदर्य में चार चाँद, मदमस्त हवा का झोंका। 
जीवन का आनंद वसंत, ऋतुराज बड़ा अनोखा।।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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