बसंत - कविता - स्मृति चौधरी

नई उमंग, सौंदर्य अनुपम।
देखो आया, प्रकृति का उपहार बसंत।।

बहे चंचल ध्वनि, पूरवा में कल कल तरंग,
सुगंध बयार संग, हर्षित हर घर आंगन।
मिटी प्रतीक्षा, अभिवादन करता भू का मन,
पूरित-परिमल निर्मल, सजल सौम्य अंग।।

नई उमंग, सौंदर्य अनुपम।
देखो आया मनभावन स्वप्निल बसंत।।

नव पल्लव नव कुसुम लता संग, खिला नवल नील अकाश,
नवसृजन से श्रंगार धरा का, चहुँ दिशा प्रफुटित प्रकाश।
कुके कोयल वन उपवन, यौवन छाया हर अंग,
मुरझाए प्रकृति के अधरों पर, प्रफुल्लित पुष्प भरे मकरंद।।

नई उमंग सौंदर्य अनुपम।
देखो आया सब ऋतुओं में श्रेष्ठ बसंत।।

मधुर मधुर मधुपों का गुंजन, हुआ प्रेयसी से संवाद,
इंद्रधनुष छाया नंभ पर, छंटा वसुधा का अवसाद।
अद्भुत आलौकिक छवि, दिग दिगंत छायी अरुणाई,
नवयौवन को भर आलिंगन, देखो धरा कैसी इतराई।।

नई उमंग सौंदर्य अनुपम।
देखो आया कण कण में रितुपति बसंत।।

स्मृति चौधरी - सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)

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