मुझे आश्वासन में मत बाधों
बस धीरे-धीरे चलनें दो,
सागर से निर्मित नमक नहीं हूँ,
धीरे-धीरे गलने दो।
तुम वसंत में नव पल्लव के
गीत ग़ज़ल के शौकीन हो
मैं पतझड़ के राग का कायल
हवा के रौ में बहनें दो।
तुम जीवन मंथन में केवल
अमृत ख़ातिर तड़प रहे हो
गरल की मात्रा यहाँ अधिक है,
विष-पान मुझे हीं करने दो।।
विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)