आज बसंत की छाई लाली - गीत - बासुदेव अग्रवाल "नमन"

आज बसंत की छाई लाली,
बाग़ों में छाई खुशियाली, 
आज बसंत की छाई लाली।।

वृक्ष वृक्ष में आज एक नूतन है आभा आयी।
बीत गयी पतझड़ की उनकी वह दुखभरी रुलायी।
आज खुशी में झूम झूम मुसकाती डाली डाली।
आज बसंत की छाई लाली।।

इस बसंत ने किये प्रदान हैं उनको नूतन पल्लव।
चहल पहल में बदल गया अब उनका जीवन नीरव।
गूँज रही है अब उन सब पर मधुकर की गूँजाली।
आज बसंत की छाई लाली।।

स्वर्णिम आभा छिटक रही आज रम्य अमराई में।
महक उठी बौरों से डालें बाला ज्यों तरुणाई में।
फिर कानों में मिश्री घोल रही कोयल मतवाली।
आज बसंत की छाई लाली।।

आज चाव में फूल रहे हैं पौधे वृक्ष लता हर।
बाग़ बगीचे सजा रहे मृदु आभा को बिखरा कर।
कैसी छाई दिग दिगंत में ये मोहक हरियाली।
आज बसंत की छाई लाली।।

मंद पवन के हल्के झोंके तन को करते सिहरित।
फूलों की मादक सौरभ है मन को करती मोहित।
श्रवणों में संगीत के स्वर दे पुर्वा पाली पाली।
आज बसंत की छाई लाली।।

बिखरा सुंदर नीलापन इस विस्तृत नभ मंडल में।
संध्या की लाली छाई फिर मोहक नील पटल में।
उस पर पक्षी चहक रहे हैं भर मन में खुशियाली।
आज बसंत की छाई लाली।।

आज जगत की सकल वस्तु में नव उमंग है छाई।
इस बसंत की खुशियाँ जा हर मन में आज समायी।
जिसकी रचना ऐसी फिर वह कितना सुंदर माली।
आज बसंत की छाई लाली।।

बासुदेव अग्रवाल "नमन" - तिनसुकिया (असम)

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