संदेश
पतंग की डोर - कविता - तेज नारायण राय
बचपन में पतंग उड़ाते जब कट जाती थी पतंग की डोर और जा गिरती थी गाँव की सीमा से दूर किसी पेड़ की फुनगी पर तब पतंग के पीछे दोस्तों …
मेरी नानी - कविता - उमेश यादव
कमर झुकी है हाथ में डंडा, बड़ी सुहानी लगती हैं। माँ की मम्मी, बड़ी सुंदरी, मेरी नानी लगती हैं॥ बचपन की कुछ मीठी यादें, अब भी मन हर्षाते …
बचपन - कविता - प्रवीन 'पथिक'
है याद आती, वह बातें पुरानी, वही प्यारा क़िस्सा, वह बीती कहानी। याद आता वह तेरा मुस्काता चेहरा, थी होती लड़ाई, पर था प्रेम गहरा। जब भी …
बचपन के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कितने सुंदर, बेमिसाल थे, छुटपन के दिन बचपन के दिन, रह ना पाते सखियों के बिन। रह ना पाते सखियों के बिन। खेलकूद थे मस्ती थी, काग़ज़ वाली क…
रविवार - कविता - राजेश 'राज' | Sunday Poem Hindi
सुन! कल रविवार है, बेफ़िक्री से खेलेंगे समय की बंदिशें दूर रख देंगे सुबह जल्दी आना। एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण योजना बनाते थे हम, मनपसंद …
हम हैं छोटे-छोटे बच्चे - कविता - राहुल भारद्वाज
हम हैं छोटे-छोटे बच्चे, त्यौहार हमें लगते हैं अच्छे। स्कूल में पड़ जाते हैं अवकाश, दिन होते हैं वो कितने ख़ास॥ पढ़ने की कोई चिंता नहीं,…
बचपन - कविता - ऋचा तिवारी
मन माधव सा दौड़ा करता, ये चंचल सा बचपन प्यारा। तारो को मुट्ठी में भर लूँ, और तिमिर मिटे जग का सारा। जिज्ञासु मन भोला बचपन, निस्पाप…
काश कि बचपना होता - कविता - विनय विश्वा
एक वह गोली थी जो बचपन का हिस्सा हुआ करती थी एक यह गोली है जो शासन की बंदूक से निहत्थे को छलनी कर देती है कितना फ़र्क़ है है ना बचपन और स…
एक गुड़िया सी लड़की - कविता - रमाकान्त चौधरी
एक गुड़िया सी लड़की घर में, बातें बहुत बनाती है, है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। घर भर को है ख़ूब रिझाती, अपनी मीठी बोली …
बचपन - कविता - अभिलाषा भाटी
ये दिन फिर ना आएँगे खिलते मुस्कुराते ये चेहरे ज़रा सी बात पे उदास होते ये चेहरे... फिर खिलखिलाकर हँस देते ये चेहरे... समेट लो इन पलों क…
माँ - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
माँ का क़र्ज़ भूल ना जाना बचपन याद करो, अपना फ़र्ज़ भूल ना जाना बचपन याद करो। ममता ने जब छाँव करी जब कड़ी धूप छाई, निज आँचल में छिपा लिया ज…
बचपन की एक रात - कविता - इमरान खान
बचपन की एक रात मुझे पुकारती हुई। जुगनुओं की रोशनी में, भीगती हुई सैंकड़ों बूँदें। सफ़ेद चादर बर्फ़ की, चंद्रमा की काली रोशनी में। पंचम…
वो बचपन - कविता - अनूप अंबर
वो बचपन कितना सुंदर था, संग संग मित्रों की टोली थी। हर दिन दिवाली जैसा लगता, हर शाम तो जैसे होली थी॥ संग-संग खेलते लड़ते थे, मन में वै…
काश! मैं छोटी होती - कविता - अंजली शर्मा
काश! मैं छोटी होती, न कोई दिक्कत, न कोई परेशानी होती। काश! मैं छोटी होती, न वर्तमान का संघर्ष, न भविष्य की चिंता होती। काश! मैं छोटी ह…
बालहठ - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
मर्यादा को लाँघ जाता है बालहठ, उसे बढ़ने दो समय के अनुसार, उन्हें रोक देना जब सीमा का अतिक्रमण हो, उनमें आकाश छूने की चाहत है आपको चा…
बड़ा मज़ा आता था - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
बचपन के दिनों में दोस्तों के साथ मिलकर शरारतों को करने में बड़ा मज़ा आता था। बचपन के खेल-खेल में अपने दोस्त की ढीली पैंट नीचे निपकाने …
यादों की बारात सजाऊँ - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
यादों की बारात सजाऊँ, बचपन फिर लम्हें जी पाऊँ। माता की ममता छाया तल, पा सुकून फिर से सो जाऊँ। बाबूजी भय से सो जाऊँ, किताब खोल स्वमन बह…
गाँव का बचपन - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
गाँव में बीते बचपन का मुझे दृश्य दिखाई देता है, अपने गाँव का वो प्यारा मुझे स्वप्न दिखाई देता है। काँव-काँव कौओं की हमको सुबह सुनाई द…
यह कैसा बचपन? - कविता - गोकुल कोठारी
लगता है वो गुमसुम-गुमसुम उसे कभी न चहकते देखा न डाल-डाल फुदकते देखा हरफ़ उसको लगते बेमानी बस ढूँढ़ रहा कुछ दाना पानी इसी उधेड़बुन में वक़…
वह आज भी बच्चा है साहब - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
वह आज भी बच्चा है, नन्हा सा मासूम सा, वही जिसे कहते है लोग, कोरा सा काग़ज़ सा। मिला मुझे भगवान को, साँचे में ढालते हुए, नन्हें हा…
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