संदेश
छवि (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२) प्रलय क्षीर सागर में मचता, शयन करे गोविंद ज्यों। सृष्टि-सृजन करते हैं ब्रह्मा, बैठ-क्रोड़ अरविंद ज्यों।। जड़-चेतन का यही समन्वय, सृष…
छवि (भाग १) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१) अदृश्य चेतना की छवि तुम, दिव्य-प्रभा से हो भरी। आवेगी और विवेकी हो, ज्ञानमयी शिवसुंदरी।। तुझसे है स्पंदित यह जीवन, स्पंदित यह संसा…
बढ़ेगा आगे भारत (भाग ५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(५) मिटे हजारों देश, आज तक इस धरती में। मिले भग्न अवशेष, यथा भू की परती में।। बनकर कई ग़ुलाम, तजे निज संस्कृति प्यारी। हुए कई बेनाम, सं…
बढ़ेगा आगे भारत (भाग ४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(४) अकबर शासन काल, किया भारत का खंडन। भू अफ़ग़ानिस्तान, हुआ इस्लामिक मंडन। मुगल वंश का दंश, झेलकर भारत डोला। हार गया था युद्ध, नबाब सिरा…
बढ़ेगा आगे भारत (भाग ३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३) भारत पर आक्रमण, किया तुर्कों ने भारी। था शातिर महमूद, गजनबी अत्याचारी। था अतिशय शैतान, मुहम्मद गौरी पातक। कुतुबुद्दीन गुलाम, बने द…
बढ़ेगा आगे भारत (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२) देवासुर संग्राम, सदा ही होता आया। निकला जो परिणाम, उसे युग भूल न पाया। किए प्रबल संग्राम, परशुराम-हैहय मिलकर। दशरथनंदन राम, लड़े रा…
बढ़ेगा आगे भारत (भाग १) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१) कल था महा विशाल, हमारा प्यारा भारत। आज हुआ जो हाल, करें किसपर हम लानत? कल अफ़ग़ानिस्तान, हमारा ही था प्यारे। जावा पाकिस्तान, अंक में…
मैं ममता हूँ (भाग ६, अंतिम भाग) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(६) मेरे ही बच्चे फसल खेत में बोते हैं। ईंटा-पत्थर कोमल कँधों पर ढोते हैं। आठों घण्टे खटते खूब कारखानों में। नित्य बहाते सीकर कोयला-खद…
मैं ममता हूँ (भाग ५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(५) मैं मातु यशोदा शकुंतला यशोधरा हूँ। कौशल्या मायादेवी त्रिशला तारा हूँ। महा समर लक्ष्मीबाई बन के करती हूँ। मैं बन कल्पना उड़ान गगन पे…
मैं ममता हूँ (भाग ४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(४) कहती है ममता अपनी कथा निराली है। यूँ मन से जल्दी वह न निकलने वाली है। समय मिले तो इतिहास कभी खंगालो तुम। हुई नहीं किसी काल में भी …
मैं ममता हूँ (भाग ३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३) हर युग में मैं अवतरण धरा पे लेती हूँ। मातृ रूप धारण कर कर्त्तव्य निभाती हूँ। मैं रचती हूँ नव कथा-कहानी इस जग में, स्नेह-दीप बनकर ज…
मैं ममता हूँ (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२) ममता कहती मैं नारी हूँ मातृ-स्वरूपा। हूँ परिभाषा हीन सुसज्जित शब्द अनूपा। मैं हूँ संतति की अंतस संस्कार वाहिनी। वात्सल्य स्नेह अरु…
मैं ममता हूँ (भाग १) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१) मम तजना आसान नहीं है कहती ममता। मम का करे निदान नहीं मानव में क्षमता। मम का बंधन डोर काटना अतिशय भारी। मम ही मम चहुँ ओर बँधे मम से…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३६) उदित हुए मार्तण्ड, किरण पट अपना खोले। नव सृजित झारखण्ड, कथा भावुक हो बोले। मन की इक-इक गाँठ, निवासी खोल रहे थे। होकर आशातीत, निरं…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३५) जगपालक दिनमान, किरण पट अपना खोले। होठों पर मुस्कान, जगा कर झट से बोले। नेता बाबूलाल, मरांडी बने पुरोगम। तिलक लगाए भाल, किए सबको स…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३४) जगपालक दिनमान, किरण पट अपना खोले। लेकर लंबी साँस, सगर्वित होकर बोले। बिहार की सरकार, घोषणा की थी जारी। पूर्ण रूप अधिकार, जैक को द…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३३) लेकर नवल प्रभात, प्रभाकर नभ पे छाए। मंगलमय जयगान, मधुरतम स्वर में गाए। पल दो पल पश्चात, किरण पट अपना खोले। परम खुशी की बात, प्रफु…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३२) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३२) दल गत जोड़-घटाव, प्रांत भर में था जारी। लगा रहे थे दाँव, विविध दल-बल अतिकारी। हार-जीत का स्वाद, समय ने खूब चखाया। अलग राज्य की माँ…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३१) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३१) मिल-खदान मजदूर, उभय के भाग्य-विधाता। नेता ए. के. राय, वामपंथी जन नेता। सीधे-साधे नेक, भावनाशील भयानक। मजदूरों को एक, किए दिलवाए थ…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३०) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३०) तनिक धरो तुम धीर, मिहिर हँस कर के बोले। होकर कुछ गंभीर, किरण पट अपना खोले। कई नाम हैं और, अभी लेने को बाकी। फरमाओगी गौर, पूर्ण हो…