मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(३६)
उदित हुए मार्तण्ड, किरण पट अपना खोले।
नव सृजित झारखण्ड, कथा भावुक हो बोले।
मन की इक-इक गाँठ, निवासी खोल रहे थे।
होकर आशातीत, निरंतर बोल रहे थे।।

खत्म हुआ संघर्ष, रहे खुशहाल निवासी।
करे सतत उत्कर्ष, सहज-सरल आदिवासी।
आदिवासी महान, प्रकृति माता के पूजक।
परंपरा के संग, परम संस्कृति निर्वाहक।।

श्रमजीवी सदान, रहे गतिमान निरंतर।
लब्ध करे सम्मान, झारखण्डी नारी-नर।
रहे न भूखा कोय, पेट भर भोजन पाए।
रहे न निर्धन कोय, परिश्रम करे कमाए।।

शिक्षा का प्रसार, राज्य में होवे हरदिन।
पड़े नहीं बीमार, यहाँ की जनता पलछिन।
बने पुनः हकदार,बवनोपज के वनवासी।
विस्थापन की मार, न झेले कभी निवासी।।

मद्यपान से दूर, रहे सुधि मानव आखिर।
कभी न हो मजबूर, धर्म परिवर्तन खातिर।
डायन प्रथा समाप्त, यहाँ के भू से होए।
अमन-चैन के साथ, निवासी जागे सोए।।

भटके हैं जो पथिक, सही पथदर्शन पाए।
स्नेह-सुधा सद्भाव, प्रीत से भू पट जाए।
भाषा संस्कृति पर्व, परंपरा रहे कायम।
कलाकार सगर्व, राज्य में करे समागम।।

प्रबुद्ध रचनाकार, लेखनी खूब चलाए।
उन्नत लोकाचार, राज्य का मान बढ़ाए।
लघु कुटीर उद्योग, चहुँ ओर अलख जगावे।
शुचि पर्यटन केंद्र, दिनोंदिन बरकत पावे।।

कृषि अरु विज्ञान, समुन्नत होवे अतिशय।
तकनीकी संज्ञान, मिटाए मन का संशय।
नगरीकरण प्रतिरूप, राज्य को नित दमकावे।
खनिज विविध प्रारूप, सतत किस्मत चमकावे।।

इतना कह दिनमान, किरण पट तनिक हिलाए।
गाकर मंगल गान, धरा पर शीश झुकाए।
होकर भाव विभोर, पुनः लब अपना खोले।
सिंहासन की ओर, इशारा करके बोले।।

हे सपूतों महान! राज्य को रखो बनाए।
वीरों का बलिदान, कभी भी व्यर्थ न जाए!
बने रहो दिन-रैन, राज्य के सजग नियंता।
दल चाहे जो होय, करो मत इसकी चिंता।।

समरसता का धार, निरंतर बहे धरा पर।
भातृत्व सदाचार, निरंतर रहे धरा पर।
आए विघ्न हजार, कभी मत हारो हिम्मत।
तुम समर्थ सरकार, बनो जनता की ताकत।।

समय हो चला आज, पुनः मैं कल आऊँगा।
झारखण्ड को देख, गर्व से इठलाऊँगा।
री ममता नादान! न कहना कथा सुनाओ।
मत कहना दिनमान! वायदा कर के जाओ।।

नहीं नहीं मंदार! प्रश्न अब नहीं करूँगी।
झारखण्ड पर प्यार, यथावत बरसाऊँगी।
नमन तुम्हें शतबार, शुभाशीष दिए जाओ।
उर तल से आभार! मिहिर! कल फिर से आओ।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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