विद्यार्थी जीवन - कविता - महेन्द्र सिंह राज

विद्यार्थी जीवन तपसी सा,
तपना पड़ता है दिन रात। 
बिनातपे कोई सफल न होता,
पक्की है मानो यह बात।। 

काग सदृश चेष्टा हो जिसकी,
बगुले सम नित ध्यान रहे।
मात पिता गुरु चरणों में नित, 
सादर नम जिसका बान रहे।। 

जिसकी निद्रा श्वान समान हो,
लेता हो बस अल्प अहार।
सदन त्याग जो बाहर रहता,
पाता विद्याका असीमउपहार।। 

विद्यार्थी का मतलब होता, 
जो विद्या का सम्मान करे।
मानवीय मूल्यों को अपनावै,
अपनी संस्कृति का मान करे।।
 
साक्षरता अरु शिक्षा का जो, 
अन्तर ठीक समझता है।
सही मायने में वही विद्यार्थी,
सद्गुण का साधक बनता है।।

जो विद्यार्थी पढ़ लिखकर भी,
सदाचार वाहक ना होता। 
उसकी विद्या व्यर्थ है मानो,
व्यर्थ समय वह अपना खोता।।

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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