बढ़ेगा आगे भारत (भाग ४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(४)
अकबर शासन काल, किया भारत का खंडन।
भू अफ़ग़ानिस्तान, हुआ इस्लामिक मंडन।

मुगल वंश का दंश, झेलकर भारत डोला।
हार गया था युद्ध, नबाब सिराजुद्दोला।

यथा हुई शुरुआत, ग़ुलामी भारत गाथा।
भारत को दे मात, उठाया क्लाइव माथा।

चली कंपनी राज, देश भी रहा न अपना।
चढ़ गया ब्रिटिश ताज, हुआ पूरन हर सपना।

अलग हुआ नेपाल, हमें इतिहास बताए।
तिब्बत अरु भूटान, अलग ध्वज थे फहराए।

इसी तरह यह देश, हुआ कई बार खंडित।
फिर भी था यह देश, परम् महिमा से मंडित।

भारत पाकिस्तान, हुआ बँटवारा जब से।
दहक उठा कश्मीर, नाम मज़हब पर तब से।

सुना रहा इतिहास, पुरानी कल की बातें।
लाठी जिसके पास, भैंस वे जन ही पाते।

बात सरासर सत्य, बताओ मानें कैसे?
किसका था अधिपत्य, भैंस पर जानें कैसे?

दिखता है कुछ और, सत्य को यदि खंगालो।
करो ज़रा तुम गौर, वतन के ऐ रखवालों।

देश हुआ आज़ाद, कहो किसके बलबूते?
करो उन्हें फ़रियाद, घिसें थे जिनके जूते।

किसने माँगा खून, वतन से बाहर जाकर?
किसको मिला सुकून, वतन अपना बँटवा कर?

जो थे अंतर्धान, उसे क्यों ढूँढ न पाए?
चला खोज अभियान, उसे वापस नहिँ लाए।

पकड़ लिए निज हाथ, कुशलता से यूँ लाठी।
शागिर्दों के साथ, बाँध ली साँठी-गाँठी।

उठा रही आवाज़, आज भारत की जनता।
खोलो सारे राज़, देश के भाग्य नियंता।

जगी हृदय में पीर, मगर मन में है हिम्मत।
छँट जाएगा तिमिर, बढ़ेगा आगे भारत।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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