मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३२) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(३२)
दल गत जोड़-घटाव, प्रांत भर में था जारी।
लगा रहे थे दाँव, विविध दल-बल अतिकारी।
हार-जीत का स्वाद, समय ने खूब चखाया।
अलग राज्य की माँग, दिनोंदिन था गहराया।।

'बंद बुलाना' रीत, शुभारंभ हुई पलछिन।
'तोड़-फोड़' से प्रीत, बढ़ायी जनता हरदिन।
जेल भरो अभियान, लगा था लाने रंगत।
पार्टी की पहचान, दिलाए थे पारंगत।।

चली गोलियाँ खूब, विरोधी हुए हताहत।
बदल चुका दल रूप, नहीं बदली थी चाहत।
अलग राज्य की शोर, ज़ोर पकड़ी थी भीषण।
जनता भाव विभोर, हुए थामे थी दामन।।

कह कर दीनानाथ, पछिम में पाँव बढ़ाए।
जाते-जाते हाथ, यथावत पुनः हिलाए।
कल आना करतार! वायदा कर के जाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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