मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३०) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(३०)
तनिक धरो तुम धीर, मिहिर हँस कर के बोले।
होकर कुछ गंभीर, किरण पट अपना खोले।
कई नाम हैं और, अभी लेने को बाकी।
फरमाओगी गौर, पूर्ण होगी तब झाँकी।।

टेकलाल, सालखन, चले थे लेकर दल-बल।
कर्म-भार निर्वहन, किए थे सूरज मंडल।
लोग हजारों साथ, चले थे कदम-मिलाकर।
जात-पात रख ताक, आपसी भेद भुलाकर।।

किसान औ मजदूर, जुटे थे दल में भारी।
युवा-वृद्ध के संग, हजारों नर औ नारी।
अत्याचार विमुक्त, राज्य का देकर नारा।
कभी बहाए रक्त, कभी करुणा रस धारा।।

नेता त्रय महान, प्रांत में जादू ढाए।
मजदूर औ किसान, वर्ग को सतत जगाए।
घर-घर शिक्षा दान, दिए जन-जन को वारे।
नशा मुक्ति अभियान, चलाकर प्रांत उबारे।।

समय हो चला आज, पुनः मैं कल आऊँगा।
किए कौन क्या काज? सविस्तार बतलाऊँगा।
लेकिन प्रभु मंदार! वायदा कर के जाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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