मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(३३)
लेकर नवल प्रभात, प्रभाकर नभ पे छाए।
मंगलमय जयगान, मधुरतम स्वर में गाए।
पल दो पल पश्चात, किरण पट अपना खोले।
परम खुशी की बात, प्रफुल्लित होकर बोले।।

नौ भाषा क्षेत्रीय, परम मर्यादा पाई।
राँची की शुचि भूमि, सगर्वित हो इठलाई।
विद्यार्थी खुशहाल, विश्वविद्यालय आए।
किए खूब किलकार, पठन में ध्यान लगाए।।

संगठनों के जाल, बिछे थे पथ पर भारी।
पकड़ लिए तत्काल, वलगाम विनोद बिहारी।
समिति बनाई खास, शुचि झार, खण्ड समन्वय।
बावन दल इक साथ, मिले करने को पथ जय।।

रैली महा विशाल, निकाली गई फटाफट।
मच गया था बवाल, किंतु न बनी यह बाधक।
रैली देख विशाल, हुई सरकार अचंभित।
अलग राज्य की माँग, ध्यान में की तब केंद्रित।।

विधानसभा बिहार, हुई सक्रिय अतिकारी।
सतत केंद्र सरकार, प्रांत प्रारूप सँवारी।
कमिटी बनी नवीन, झारखण्ड हेतु नामित।
आंदोलन सरदार, किए कमिटी को शोभित।।

फिर क्या हुआ पतंग? कथा यूँ कहते जाओ।
समय ढला किस रंग, फटाफट हमें बताओ?
घटनाएँ क्रमवार, बयाँ यूँ करते जाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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