डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ३५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
शनिवार, जनवरी 02, 2021
(३५)
जगपालक दिनमान, किरण पट अपना खोले।
होठों पर मुस्कान, जगा कर झट से बोले।
नेता बाबूलाल, मरांडी बने पुरोगम।
तिलक लगाए भाल, किए सबको संबोधन।।
होकर भाव-विभोर, निवासी गण हरषाए।
झारखण्ड जोहार! बोल कर शीश झुकाए।।
गिरि-वन-भ्रंश-पठार, खेत-पथ-पनघट-निर्झर।
शीतल स्निग्ध बयार, बधाई दी झोली भर।।
गूँज उठी संगीत, मधुर लय में मनुहारी।
लुटा रहे थे प्रीत, झारखण्डी नर-नारी।।
बिरसा का जयकार, लगाई जनता सारी।
जन नायक जयपाल, याद आए अतिकारी।।
इतना कह मंदार, धरा पर शीश झुकाए।
स्वप्न हुआ साकार, बोल कर मौन लगाए।
करुणामय मंदार! हाल बतलाते जाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।
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