संदेश
दुःख और सुख - कविता - मधुस्मिता सेनापति
दुख में ही तो सुख का महत्व ज्ञात होता है दुख में ही तो शत्रु, मित्र का पहचान होता है !! दुख में ही तो सुख का महत्व ज्ञान होता …
अभिलाष कहाँ आँसू जीवन - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
गरीबी के आँसू की धारा, अविरत प्रवहित अवसाद कहे। लोकतन्त्र नेता का नारा, दीन हीन स्वयं हमराह कहे। रनि…
भगवान - लघुकथा - दिलशेर "दिल"
"भैया, कछु नईंऐं कोरोना-वोरोना! सब कमाई को धंधों बना लओ डॉक्टरन ने। हल्को सो खाँसी ज़ुकाम भओ नईं कि ठूस दओ कोरनटाईन में।…
वक़्त निशानी छोड़ गया - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
वक़्त इतनी ही निशानी छोड़ गया सूनी पलकों पे वो पानी छोड़ गया किया था इश्क़ संग सार होने को मुझे मगर बदगुमानी छोड़ गया इक नया जहाँ…
देखो तो - कविता - सतीश श्रीवास्तव
ज़मीं पर उग रहे हैं कँटीले तार देखो तो, एकता के सभी नारे हुए बेकार देखो तो। सहारा जिसको समझा था सुबह के स्वप्न में मैंने, वही निक…
संस्कार - लघुकथा - समुन्द्र सिंह पंवार
नई बहू से बात करते हुए सासु माँ बोली आज मेरे पैरों में बहुत दर्द है। तभी बेटा: देखों माँ के पैरों में दर्द है दबा दो। बहुँ: मै…
इजाज़त - कविता - संजय राजभर "समित"
भारी मन से माँ ने इजाजत दे दी बेटा बहू के साथ चल दिया हनीमून पर, वह एक बार भी माँ के अन्तर्मन को जानने की कोशिश नही किया । …
ज़िंदगी है हंसीं - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दोस्त खुद से मोहब्बत किया कीजिये। जिंदगी को न यूँ, बददुआ, कीजिये बेख़ुदी में क़दम डगमगा गर गये। फिर से उठके सम्भलकर चला कीजिये। जि…
धन की है खूब माया - मुक्तक - बजरंगी लाल
कोई नहीं है अपना, कोई नहीं पराया, स्वारथ के इस जहां में- दौलत से मोहमाया,रिश्ते हुए बजारू- धन की है खूब माया, बापू से पूछे बे…
तेरा चेहरा - कविता - कपिलदेव आर्य
तेरा खिलखिलाता हुआ चेहरा, जैसे महकता गुलाब लगता है! और तेरा हँसकर मुँह छुपाना, जैसे छलकता शबाब लगता है! जैसे झरना पहाड़ से गिरत…
स्वरूप प्रेम का - कविता - सुनीता रानी राठौर
प्रेम को परिभाषित करूँ वो शब्द कहाँ। है सृष्टि के कण-कण में रचा बसा प्रेम। जीवन का वीरानापन दूर करे वो है प्रेम रिश्तों में लाये…
गृहस्थी जीवन - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
गहस्थी सांसारिक जीवन स्वर्ग सम मानवीय कर्मस्थल, निखिल ध्येय पथ निर्माणक, देश, समाज, मानव लोकारोहण, अनुपम सार्वजनिक सोपान। शा…
उदासी - कविता - प्रवीन "पथिक"
मन बहुत उदास रहता है आजकल। आपकी यादें, ये दूरियां और ये अकेलापन, असह्य पीड़ा देते हैं मुझे। मस्तिष्क में एक अज्ञात हलचल, है बढ़ा…
दो पल की ज़िन्दगी - कविता - मधुस्मिता सेनापति
एक ख्वाब है जो अक्सर अधूरा होता है नयी चाहत जग जाती है जब पिछला ख्वाब पूरा होता है.......!! आज जो नया हैं कल वह हो जाती है पुर…
सामाजिक विकार - दोहा - संजय राजभर "समित"
किशोर अति कामुक बने, अति है खुला विचार। होता नहीं यकीन अब, देख सहज व्यभिचार।। अन्तर्मन से प्रेमिका, त्याग समर्पण भाव। मन मंदि…
एक अन्जाना - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ये सोशल मीडिया भी क्या चीज है। एक अंजान अपरिचित व्यक्ति हमें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजता है और इंतजार करता है। लगातार हम देखते हैं …
यकीन आपको दिलाऊँ कैसे - गीत - चंदन कुमार अभी
जान से ज़्यादा आपको ही चाहा , यकीन आपको दिलाऊँ कैसे? जान बना लिया हूँ आपको , अब बिना जान के जी पाऊँ कैसे? देखें नहीं हो कभी आ…
श्रम ही ईश्वर है - कविता - सुधीर कुमार रंजन
हां, आज़ सबके साथ, मैंने भी जश्न मनाए, खुशियों के गीत गाए, लड्डुओं के भोग लगाए, मिट्टी के भी दीप जलाए, पटाखे भी जमकर फोड़…
जिंदगी एक पाठशाला हैं - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जिंदगी कोई जंग नहीं यह तो एक पाठशाला हैं उम्र सी बढ़ती कक्षा, यह तो अनुभवों की माला हैं.......!! पाठशाला जो हमें, आत्म-ज्ञान क…
उफ़ानें हैं जवानी की - ग़ज़ल - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
उफ़ानें हैं जवानी की, तरंगें यों उफ़नती हैं। नशीली नैन मधुशाला, बनी मादक मचलती हैं। सुहानी चाँदनी रातें, अकेली वो थिरकती हैं…
भारत माँ के वीर - गीत - राहुल सिंह "शाहावादी"
भारत माँ के वीर शहीदों, तुमको यह शीश नमन करता है। लाज रखी भारत माता की, कुछ ॠण मुझपर भी बनता है।। भारत माँ के वीर -----…
वक्त की कसौटी - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हम सब समय की कसौटी पर कभी न कभी जरूर कसे जाते हैं। अर्थात अच्छे और बुरे दौर से हर किसी को कभी न कभी गुजरना तो जरूर पड़ता है। र…
जीवन है अनबूझ पहेली - मुक्तक - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"
जीवन बीत रहा है पल-पल, तृष्णा लेकिन अभी अधूरी। जीवन और मृत्यु की प्रतिदिन, क्षण-क्षण घटती जाती दूरी। जीवन भर सुख वैभव के सामान जु…
हम बेटियाँ - कविता - रवि शंकर साह
हम बेटियों को श्राप है क्या? खुलकर हँसना पाप है क्या? बेटियों पर ही बंदिशें है क्यों? बेटों को मुक्त आकाश है क्यों? हमें लड़की ह…
जो सबके होते हैं - ग़ज़ल - आलोक कौशिक
जो सबके होते हैं वो किसी के नहीं होते लोग दिखते हैं जैसे अक्सर वैसे नहीं होते मेरे जैसे दिलफेंक भी होते हैं कुछ शायर ग़ज़ल लि…
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