वक़्त निशानी छोड़ गया - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन

वक़्त इतनी ही निशानी छोड़ गया
सूनी पलकों पे वो पानी छोड़ गया

किया था इश्क़ संग सार होने को
मुझे  मगर  बदगुमानी छोड़ गया

इक नया जहाँ आबाद करे शायद
मेरी चौखट भी पुरानी छोड़ गया

खुद पी रहा था आब-ए-हयात वो
मेरे लिए दरिया का पानी छोड़ गया

सब जानते हैं उसी के नाम से 
मुहब्बत की कैसी निशानी छोड़ गया

दिल उसका हुआ किसी से मंसूब
खुशी खुशी ला मकानी छोड़ गया

मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)

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