भगवान - लघुकथा - दिलशेर "दिल"

"भैया,
कछु  नईंऐं कोरोना-वोरोना!
सब कमाई को धंधों बना लओ डॉक्टरन ने।
हल्को सो खाँसी ज़ुकाम भओ नईं कि ठूस दओ कोरनटाईन में।"

"ऐसी बात नहीं है काका,
ये जो इतने लोग बीमार पड़ रहे, एडमिट हो रहे, यहां तक कि मर तक रहे, वो झूठ थोड़े ही है।"

"देखो लला! हमने तो जो भी सुनो हेगो के जो लोग मर रये हेंगे, वो खुद थोड़ी मर रये, जे नासपीटे डॉक्टर बिन लोगन के दिल गुर्दा निकाल ले रये, और कै जे रये के कोरोना से मर गओ!"

उस वक़्त लला यानी लाल सिंह ने अपने काका को बहुत समझाया था कि वो अपने ज़ुकाम बुखार का अस्पताल जाकर इलाज करवाएं और कोरोना टेस्ट भी करवा लें।
लेकिन काका थे कि डॉक्टर और कोरोना को कोसने से बाज़ नहीं आ रहे थे।

ज़ुकाम बुखार के चलते एक दो दिन बाद ही अचानक काका की तबियत बिगड़ी और घर के लोग उन्हें आनन फानन हॉस्पिटल लेकर पहुंचे, इत्तेफाक से उनकी जांच पॉजिटिव निकली और वो अस्पताल में एडमिट हो गए।

आज काका अस्पताल से वापस लौटे हैं और अपने घर मे ही कुछ दिनों के लिए कोरेनटाईन है और आने जाने वाले लोगों से दूर से ही बात कर रहे-

"डॉक्टर तो भगवान को दूसरों रूप हैं भैया,
मरीजन कि अस्पताल में कित्ती सेवा कर रये, हुनसारे से दूध ब्रेड दवा दे रये, दुफरिया में भोजन, दवाई, और रात में भी जेई सब दे रये, साफ़ सफाई को पूरो ध्यान रख रये, पूरे वारड में 6-6 हाथ की दूरी पे चरपाई डली हेंगीं, मजाल है के कोनऊ मरीज एक दूसरे के पास फटक सके, और तो और बिल्कुल किसी होटल के जैसे अलग अलग कमरा भी दे रखे हैं मरीजन को। 
बे न एक रुपैया ले रये और न कोनऊ दिल गुर्दा निकाल रये।

हम तो जे के रये के भैया, जिसे तनक सो लगे के वो बीमार हेगो, तो भैया सरकारी अस्पताल में दौड़ लगा के दिखाने जाए।

डाक्टर भगवान की जय।।।"

दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्यप्रदेश)

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