स्वरूप प्रेम का - कविता - सुनीता रानी राठौर

प्रेम को परिभाषित करूँ वो शब्द कहाँ।
है सृष्टि के कण-कण में रचा बसा प्रेम।

जीवन का वीरानापन दूर करे वो है प्रेम
रिश्तों में लाये प्रगाढ़ता वो शक्ति है प्रेम।

सरस अनुभूतियों संग बधां आँचल में
ईश्वर की अद्भुत अलौकिक कृति प्रेम।

देती हृदय को अद्भुत सुखदाई प्रेरणा
हर उम्र में नये अंदाज में उभरता प्रेम।

माँ के आँचल की वो सुखद अनुभूति
नादान बच्चा भी समझें मातृत्व प्रेम।

चिपक छाती अभिभूत हो ममत्व का
हृदय का हृदय से संवाद है मधुर प्रेम।

निर्माण करता है सुनहरे भविष्य का 
पिता का अदृश्यमान वो सार्थक प्रेम।

नाजुक रेशम की चमकीली डोर सा
हृदय पे आघात होते टूट जाता प्रेम।

जुड़ा है प्रेम से धरती और आकाश
क्षितिज का अस्तित्व बनाता है प्रेम।

प्रेम की गहराइयों को न जाना कोई
असिमित, निर्विकार  स्वरुप है प्रेम।

हवाओं के सरगम में ओस की बूँद
सर्वव्यापी खामोशियों में छुपा प्रेम।

पराये को अपना बना लेने की शक्ति
धैर्य, सहनशीलता का परिचायक प्रेम।

प्रेम से आत्मविभोर तृप्त होता मन
पूरी सृष्टि, समस्त रिश्ते को बाँधे प्रेम।

प्रकृति प्रेम बनाता है जीवन निश्चल
प्राणियों के प्रति हृदय में भरता प्रेम।

सुख दुख के जीवन साथी हैं परमेश्वर
जगा लो अंतरात्मा में अलौकिक प्रेम।

सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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