यकीन आपको दिलाऊँ कैसे?
जान बना लिया हूँ आपको ,
अब बिना जान के जी पाऊँ कैसे?
देखें नहीं हो कभी आप दर्द मेरा ,
अब अपना दर्द आपको दिखाऊँ कैसे?
अक्सर मैं रोता हूँ तन्हाई में ,
अब अपने तन्हाई में आपको बुलाऊँ कैसे?
खोया रहता हूँ हरदम आपके ही ख़्यालों में ,
अब आपके ख़्यालों में मैं आऊँ कैसे?
भटकता हूँ हरदम आपके ही गलियों में
कभी अपनी गलियों में आपको बुलाऊँ कैसे?
नज़रे दीदार करना चाहता है हरदम ,
अब नज़रों कों आपका दीदार कराऊँ कैसे?
नज़र से नज़र कभी मिलाया नहीं आपसे ,
अब नज़र से नज़र मिलाऊँ कैसे?
मेरे लबों पर नाम आपका रहता है हरदम ,
अब आपके लबों पर नाम मैं अपना लाऊँ कैसे?
दिल में मेरे जो जगह बना है आपका ,
अब आपके दिल में वो जगह बनाऊँ कैसे?
कोई समझने वाला नहीं है जज़्बातों कों
अब अपनी जज़्बातों कों समझाऊँ कैसे?
आप तो अक्सर खुश रहते है अपने महफ़िल में ,
अब अपनी महफ़िल कों खुशहाल बनाऊँ कैसे?
जान से ज़्यादा आपको ही चाहा ,
यकीन आपको दिलाऊँ कैसे?
जान बना लिया हूँ आपको ,
अब बिना जान के जी पाऊँ कैसे?
चंदन कुमार अभी - दयानगर, बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)