संस्कार - लघुकथा - समुन्द्र सिंह पंवार

नई बहू से बात करते हुए सासु माँ बोली आज मेरे पैरों में बहुत दर्द है।
तभी बेटा: देखों माँ के पैरों में दर्द है दबा दो।
बहुँ: मैं सुबह से काम करके थक गई हूँ, मुझे नींद आ रही है। मैं सोने जा रही हुँ।
पति चिल्लाते हुए: पूजाआआ....
तभी सासु: हाय राम! दो दिन आईं को हुए हैं और ऐसे ज़ुबान चला रही है। कोई संस्कार है या नहीं तुममें।
पूजा: मम्मी जी आप लोगों ने मांगा नहीं था।
सासु: क्या मतलब
पूजा: हाँ मम्मी जी,
आप लोगों ने जो दहेज के समान की लिस्ट दी थी उसमें संस्कार तो कही नहीं लिखा था।
फ़्रीज, टी वी, ए .सी, अलमारी, कैश, गाड़ी, सोने के सभी जेवरात, बेड, सोफा, वाशिंग मशीन, डिनर सेट, और घर के जरूरत का सब समान लिखा था।
पर संस्कार नहीं लिखा था, मम्मी जी औऱ ये सब जुटाने में मेरे पापा ने घर गिरवी रख दिया माँ ने सभी जेवर बेच दिये, पापा के दोस्तों ने कुछ आर्थिक मदद की और कुछ कर्ज बैंक से हुआ है।
बस इसी सब में मैंने अपना संस्कार भी बेच दिया।
पति और सास की नज़र झुकी रह गयी।


समुन्द्र सिंह पंवार - रोहतक (हरियाणा)

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