हम बेटियाँ - कविता - रवि शंकर साह

हम बेटियों को श्राप है क्या?
खुलकर हँसना पाप है क्या?
बेटियों पर ही बंदिशें है क्यों?
बेटों को मुक्त आकाश है क्यों?

हमें लड़की होने का एहसास कराया जाता है।
पायल की रुनझुन से पाँव में बेड़ी डाला जाता।
माँग में सिंदूर डालते ही पराया धन बन जाता है।
हमारी स्वतंत्रता को दुनियादारी में जकड़ा जाता है।

कभी उलाहना कभी प्रताड़ना हमें सुनाया जाता है ।
कभी कभी तो दहेज के लिए हमें जलाया जाता है।
जन्म से ही क्यों लड़की को गुलाम बनाया जाता है।
ऐसा वैसा मत करो लड़को से डरो समझाया जाता है।

जोर से मत हँसो, मन का मत बोलो, ऐसे ही बैठो।
सलीके से रहो, पराये घर जाना है, लोग क्या कहेंगे।
पहले ऐसा सोचो कि आना चाहिए करना हर काम।
सबकी सुनना,कुछ मत कहना तब होगा कुल का नाम ।

कब तक लड़कियों को पराया धन कहलाएगी।
क्या कभी लड़की भी स्वछंद उड़ान भर पाएगी।
क्या ऐसा भी कल आएगा जब लड़की होने पर,
हँसी खुशी से में घी के लड्डू घर घर बांटा जाएगा।

रवि शंकर साह - बलसारा, देवघर (झारखंड)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos