अविरत प्रवहित अवसाद कहे।
लोकतन्त्र नेता का नारा,
दीन हीन स्वयं हमराह कहे।
रनिवासर मिहनतकस अविरत,
दुनिया उनको मजदूर कहे।
भूख प्यास आतर जठरानल,
बन अम्बर छत मजबूर कहे।
अश्क विरत नयना बन खोदर ,
मिल पीठ पेट हैं एक बने।
कृश काया मर्माहत चितवन ,
क्षुधित पीडित सन्तान रहे।
टकटकी लगाए प्राप्ति .आश,
दाता चाहे निज दास करे।
हो क्या माने अपमान मान,
जीवन दुःखदायक हास करे।
गज़ब धैर्य साहस जीवन पथ,
नित स्वाभिमान संघर्ष सहे।
अतिसहनशील अवसाद निरत,
आत्मनिर्भरता पहचान रहे।
है गरीब , पर खु़द्दार बहुत,
निर्माणक जो निज राष्ट्र रहे।
रखता ज़मीर ईमान सतत् ,
इन्सान विनत निज दर्द सहे।
अरमान नहीं , अवसान नहीं,
निर्भीत मनसि निशि नींद मिले।
मुस्कान बिखर दुःखार्त अधर,
परमार्थ मुदित अवसाद सहे।
बढ़ यायावर अनिश्चय पथ,
नित अश्क नैन जल पान करे।
मधुपान गरीबी हालाहल,
मदमत्त सड़क तरु शयन करे।
बढ़ चले डगर बिन राग कपट,
संकल्पित मन विश्वास भरे।
परिवार बोझ ढो कंधों पर,
दर्रा गिरि जंगल विघ्न खड़े।
कर्तव्य पथिक अधिकार विरत,
आधार प्रगति अपमान सहे।
वास्तुकार शिल्पी गजधर,
पर भूख वस्त्र छत हीन रहे।
निज व्यथा कथा आँसू बनकर,
बन मौन विकल करुणार्द्र कहे।
विधिलेख मान दारुण जीवन,
असहाय गरीबी धार बहे।
अभिलाष कहाँ आँसू जीवन,
जब व्याधि गरीबी अमर बने।
चिलका समेट माँ अन्तस्थल,
सम ममता गम सुख साथ सहे।
जनमत नेता गण सदा वतन,
खा कसम पूर्व जनमत चाहे।
जीते भूले उपकार कसम,
दीनार्त सीदित को गुमराहें।
बन क्षमाशील युगधारा जग,
सामन्त पीड़ मुस्कान भरे।
संतुष्ट मुदित पा मानिक तन,
रवि अर्घ्य दान निज अश्रु लिए।
अश्क पोंछे कौन गरीबों का,
सत्ता सुख शासन मौज करे।
हरे कौन दुख संताप विकल,
दीनाश्रु पोंछ उद्धार करे।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली