वक्त की कसौटी - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

हम सब समय की कसौटी पर कभी न कभी जरूर कसे जाते हैं। अर्थात अच्छे और बुरे दौर से हर किसी को कभी न कभी गुजरना  तो जरूर पड़ता है।
रफ़ी साहब का गाया एक गीत है:
वक्त के दिन और रात 
वक्त के कल और आज 
वक्त की हर शय गुलाम।
वक्त का हर शय पे राज।
समय में परिवर्तन को सहने उसे स्वीकार करने की क्षमता होती है। समय अच्छा हो या बुरा गुजर तो जाता है।
यह भी नितान्त सत्य है कि समय नहीं बीतता, बीतते तो हम हैं।
उसी तरह हमें भी परिवर्तन को सहना चाहिए, स्वीकार करना चाहिए।
समय की कसौटी पर तभी तो खरे उतरेंगे हम।
हम सब जब समय के अनुरूप स्वयं को ढाल लेंगे तो जीवन को सार्थक कर सकेंगे।
समय की कसौटी पर कस कर ही तो व्यक्ति महान बनता है।
जैसे कि सोने को पिघलाकर, तपा कर ही तो कंचन का बन जाता है।

जब की हम समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं तभी तो जीवन सफल होता है और तभी सार्थक होता है।
समय ने महाराणा प्रताप जैसे महायोद्धा को घास की रोटियां खिलाई, उसी समय ने सोने चांदी के महलों में रहने वाली राजकुमारियां सीता एवं द्रोपदी को वन वन भटक कर कुश काश की चटाई पर घास फूस की झोपड़ियों में सुलाया। समय में राजा नल की भीषण परीक्षा ली। भूख से बेहाल राजा नल की भूनी हुई मछलियां भी समय की कसौटी के कारण ही तालाब को रेंग गयीं।
समय ने राजकुमारी देवकी को गर्भावस्था में बेहद प्यार करने वाले अपने ही भाई द्वारा बेगुनाह होते हुए भी कारागार नसीब कराया।
समय ने महाज्ञानी रावण की भ्रष्ट बुद्धि की जिद व अहंकार  को  समूल नष्ट करते हुए सबक सिखाया।
यह समय है इस की कसौटी पर हम सबको कभी न कभी गुजरना  तो पड़ता ही है।

वक्त का सितम कहो या समय की कसौटी गुजरना तो पड़ेगा ही, मगर समय की चुनौती को स्वीकार करते हुए सकारात्मक रहना चाहिए, ईश्वर की शरण मे समर्पित रहते हुए  विपरीत परिस्थितियों का हल खोजना चाहिए।
बुरे वक्त से गुजरना तो पड़ता ही है लेकिन जो ऐसे में भी अपने धर्म का पालन करते हैं, अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करते, वही कंचन की भांति खरे उतरते हैं जीवन की यात्रा में।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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