संदेश
कविता तुम मेरी साथी सी - कविता - मोहित त्रिपाठी
कविता तुम मेरी साथी सी संग तेल दिया तुम बाती सी, भर कर भावों से मेरा मन ज्योतित जीवन का हर क्षण। कविता तुम मेरी साथी सी अयोध्या म…
अपने-आप बनती है कविता - कविता - सुनील शर्मा 'सारथी'
दिल की गहराईयों से निकली भावनाओं की अभिव्यक्ति है कविता, अमीर की अमीरी और ग़रीब की भूख से बनती है कविता। कहीं प्रेम का तुफ़ान तो कहीं …
कवि होना फिर व्यर्थ है - कविता - रमाकान्त चौधरी
लिख न सके यदि दर्द किसी का, कवि होना फिर व्यर्थ है। दर्द उजालों को भी होते, पत्थर को भी आँसू आते। धूप भी जलती ख़ुद की तपन से, भीगे स…
कविताएँ जन्म लेती है - कविता - इमरान खान
स्वाभाविक है उन शब्दों का विकसित होना जिसके मूल में कविताएँ जन्म लेती है, कविता जीवन है या जीवन कविता है, जिसके अन्तस में कवि ख़ुद को …
हम लेखक हैं जनाब - कविता - दीक्षा
काश! लोग समझ पाते काश! एक लेखक की ज़िंदगी से रू-ब-रू हो पाते, वो कैसे लिखता है वो ही जानता है घंटो बैठकर लिखने के लिए बस चाँद को निहारत…
क़लमकार - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
कविता में क्या लिखोगे कवि? शृंगार, सौंदर्य के गीत कामिनी कंचन के आर्वत– नहीं नहीं लिखो– शहीदों का बलिदान भ्रष्टाचार का उन्मूलन दहेज कन…
प्रकृति का सुकुमार कवि : सुमित्रानंदन पंत - कविता - राघवेंद्र सिंह
जयति जय हे! हिमालय पुत्र, बन मकरंद तुम निकले। हरित आँचल हिमानी से, बनकर छंद तुम निकले। प्रकृति के अंक तुम खेले, नदी झरनों ने की कल-कल।…
काव्य में ढलती गई - गीत - शुचि गुप्ता
नव रूप लेकर मौन अंतस भावना छलती गई, निर्झर द्रवित उर वेदना शुचि काव्य में ढलती गई। सब बंद होते ही गए जो द्वार स्वप्निल थे सुखद, सम रेण…
अब आया समझ में - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
अब आया समझ में कि कवि कैसे बन जाते हैं, मन की पीड़ा हृदय तक जब हिलोर लेती है तब कवि बन जाते है। तुम ही तो हो समाज के असल पथ प्रदर्श…
बंद लिफ़ाफ़ों में - कविता - अमृत 'शिवोहम्'
मौत से पहले कोई ज़मीन ख़रीदेगा, आने वाली पीढ़ियों के लिए, दे जाएगा अपनी औलादों को, ख़ुद से महँगा सोना चाँदी, ज़मीन जायदाद और न जाने क्या-क…
आख़िर क्या करता? - लघुकथा - प्रवेन्द्र पण्डित
पूरी ऊर्जा युवावस्था का अंतिम चरण काम और नाम की प्रबल चाह लिए साहित्यिक विचारों का सैलाब हृदय में हिलोरें मारता हुआ, वहीं युवा संतान ब…
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन? - कविता - सौरभ तिवारी
मैं मन का कोलाहल लिख दूँ या लिखूँ गूँजता अन्तर मौन लिखने को हर आह भी लिख दूँ मेरा लिखा पढ़ेगा कौन? रोम-रोम की लिखूँ वेदना संवेदी शीतल …
ऐसा गीत लिखूँ - कविता - अजय कुमार 'अजेय'
संवेदना मन गागर भावना मन सागर शब्दों की सुंदरता से मैं मन की प्रीत लिखूँ। कुछ ऐसा गीत लिखूँ।। सावन के आने पर बदरी छा जाने पर बागों में…
कविताएँ सब कुछ कहती हैं - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
अनुराग बिखेरे फिरती हैं, कविताएँ सब कुछ कहती हैं। निर्झर बन करके बहती हैं, कविताएँ सब कुछ कहती हैं। प्रिय ग्रन्थों के अध्यायों में, बन…
माखनलाल चतुर्वेदी - कविता - राघवेंद्र सिंह
हुई प्रफुल्लित भारत धरिणी, काव्य रत्न का जन्म हुआ। हिन्दी का उपवन है महका, स्वयं पुष्प का जन्म हुआ। त्याग तपस्या के अनुयायी, काव्य में…
क्या लिखूँ? - कविता - अमित श्रीवास्तव
शोना बाबू के थाना न थाने पर चिंतित जवानी लिखूँ? या भूखें पेट मेहनत कर आईएएस बनते युवाओं की रवानी लिखूँ? ज़रूरतमंदों के आँखों का पानी लि…
आज मैं कुछ लिखना चाहता हूँ - कविता - शेख रहमत अली 'बस्तवी'
लिखते हैं सब, आज मैं भी कुछ लिखना चाहता हूँ। गूगल हो या अमेज़ॉन हर जगह बिकना चाहता हूँ। अदाकारी भी हो मुझमें व जुनूँन इस तरह का हो,…
कविता के संग लिखा जाऊँ - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम'
हूँ नहीं चाहता कुछ भी जग से, न माँगू मै वरदान अमर, ना बनना चाहूँ धनवान प्रखर, बस कविता की ही ओज मिले, कविता से ही पहचान मिले जब लिख…
कुमार विश्वास - कविता - राघवेंद्र सिंह
हिन्दी साहित्य पुरोधा, सरस्वती पुत्र, जीवन को काव्य साधना में समर्पित करने वाले कविराज डॉ॰ कुमार विश्वास जी के जन्मदिवस पर उन्हें समर्…
कविता की हुँकार - कविता - रमाकांत सोनी
कलमकार कलम के पुजारी लोग कवि कहते हैं, सुधारस बहाते कविता का छाए दिलों में रहते हैं। लेखनी ले कवि हाथों में ओज भरती हुँकार लिखें, माँ …