पूरी ऊर्जा युवावस्था का अंतिम चरण काम और नाम की प्रबल चाह लिए साहित्यिक विचारों का सैलाब हृदय में हिलोरें मारता हुआ, वहीं युवा संतान बलपूर्वक वृद्ध मानकर घर में क़ैद करने पर आमादा। तनाव की पराकाष्ठा होते ही याद आया तनाव नाशक औषधियों का सेवन करना व बाहर की खुली हवा में घूमने इच्छा की राह में बाधक बनी युवा संतान की ज़िद व असहनीय अपमान, हारकर क़ानून का सहारा भी लिया। कानून ने विनम्रता पूर्वक मध्यस्तता अवश्य की किन्तु न्याय अधूरा ही रहा। अतः कल्पना में डूबा संतप्त लेखक मन चुपके से क़लम लेकर निकल पड़ा कोरे काग़ज़ की पगडंडियों पर मनोव्यथा उकेरने को। जिसने भी व्यथा की गहराई को मापा बस यही कहा, इसके अतिरिक्त लेखक क्या करता?
प्रवेन्द्र पण्डित - अलवर (राजास्थान)