संदेश
धरती के दिनकर - मुक्तक - सुषमा दीक्षित शुक्ला
तमतोम मिटाते हैं जग का , शिक्षक धरती के दिनकर हैं । हैं अंक सजे निर्माण प्रलय , शिष्यों हित प्रभु सम हितकर हैं । शुचि दिव्य ज्…
नन्हीं चिड़िया - मुक्तक - रवि शंकर साह
मेरे आँगन में आ गिरी एक दिन एक नन्हीं सी, सुंदर सी चिड़िया। खून से लतपथ, करती छटपट। पैरो में बंधी थी रेशम की डोर । पीड़ा से थी अत…
नित सुभाष अनुबन्ध बनाएँ - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
भव्य मनोहर चितवन भावन, प्रेमाक्षर नव अंकुर लगाएँ। मधुर सरस लम्हों को पावन, नित सुभाष अनुबन्ध बनाएँ। गंगाज…
धन की है खूब माया - मुक्तक - बजरंगी लाल
कोई नहीं है अपना, कोई नहीं पराया, स्वारथ के इस जहां में- दौलत से मोहमाया,रिश्ते हुए बजारू- धन की है खूब माया, बापू से पूछे बे…
जीवन है अनबूझ पहेली - मुक्तक - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"
जीवन बीत रहा है पल-पल, तृष्णा लेकिन अभी अधूरी। जीवन और मृत्यु की प्रतिदिन, क्षण-क्षण घटती जाती दूरी। जीवन भर सुख वैभव के सामान जु…
जय श्री राम - गीत - डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रघुपति राघव जयतु श्रीराम, गाऊँ कीर्तन सुबह अरु शाम। लखन भरत भजूँ जय हनुमान, शत्रुघ्न मुदित दशरथ अभिराम। र…
हरियाली तीज मुदित सुहावन - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
श्रावणी महीना अति पावन, हरियाली छायी मनभावन। पावस ऋतु रानी बन आयी, रिमरिम मधुरिम जल बरसायी। तृतीया शुक्ल पक्ष न…
उर की अभिव्यञ्जना - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
उर की अभिव्यञ्जना समझ, या समझ अन्तस्थल वेदना। अन्तर्व्यथा कथानक समझ, प्रमुदित समझ उर सद्भावना। परमार्…
यायावर बढ़ते रहो - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
यायावर बढ़ते रहो अपने ध्येय पथ, आएँगे विघ्न बहुतेरे संघर्ष रथ, घायल होंगी भावनाएँ दिल में …
भारत माँ की गुहार - मुक्तक - बजरंगी लाल
जागो भारत के वीर सपूतों धरती तुम्हें पुकार रही, मानचित्र में अब चीन नहीं हो घर-घर की यही पुकार रही। इस पापी जिनपिंग को अब उसकी औका…
तुम याद आती हो - मुक्तक - बजरंगी लाल
मैं सब कुछ भूल जाता हूँ मगर तुम याद आती हो, मेंरे सपनों में आकर तुम मुझे अब भी सताती हो। बता दो जुर्म क्या मेंरा,क्या गलती किया मै…
तेरे शब्द - मुक्तक - अंकिता
सलाम तेरी कलम को अदब तेरे कलाम को। लिखने के तेरे अंदाज ने पूरा कर दिया है तेरे नाम को।। शब्द तेरे नदियों की कल कल कवितायें पह…
श्रृंगार - मुक्तक - रूपा सुब्बा
हाँ, मैं करती हूँ श्रृंगार, किसी के लिए नहीं बल्कि स्वयं के लिए श्रृंगार, क्या श्रृंगार के लिए ज़रूरी है किसी का साथ? क्या पू…
कोरोना काल में मजदूर - मुक्तक - बजरंगी लाल यादव
अब ट्रेन ना चलाना नासूर बन रहा है, ट्रेलर-ट्रकों में दबकर मजदूर मर रहा है, जिसकी बदौलतों से वतन है आज चमका, उन मुफ़लिसों को देखो…