प्रेमाक्षर नव अंकुर लगाएँ।
मधुर सरस लम्हों को पावन,
नित सुभाष अनुबन्ध बनाएँ।
गंगाजल सम निर्मल शीतल,
शुद्ध हृदय मन प्रीत जगाएँ।
टिका आस्था सत्यपूत बल,
अनुबन्धों का दीप जलाएँ।
अनुबन्ध सदा किसलय कोमल,
रक्षण जीवन रीति बनाएँ।
तजें कपट छल लोभ जड़ित मन,
अपनापन सम्प्रीति रचाएँ।
निश्छल सरित् सलिल अवगाहन,
अन्तर्मन स्नेहिल भाव जगाएँ।
मधुरिम स्वर नित सहज सरल बन,
रिपु से भी अनुबन्ध बनाएँ।
हरियाली रिश्ते निकुंज बन,
गूंजे भँवरा फूल खिलाएँ।
शौर्यवीर भारत सादर मन,
मान शान अनुबन्ध निभाएँ।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली