धरती के दिनकर - मुक्तक - सुषमा दीक्षित शुक्ला

तमतोम मिटाते हैं जग का ,
शिक्षक धरती के दिनकर हैं ।

हैं अंक सजे निर्माण प्रलय ,
शिष्यों हित प्रभु सम हितकर हैं ।

शुचि दिव्य ज्ञान के दाता वह 
सोने को पारस मे बदले।

वह सृजनकार वह चित्रकार ,
वह मात पिता सम सुधिकर हैं ।

कच्ची मिट्टी को गढ़कर के ,
वह  सुन्दर  रूप सजाते  हैं ।

देते  खुराक   मे  संस्कार ,
वह  ज्ञानाहार  कराते  हैं ।

शिक्षक ही पंख लगाते हैं,
सपनों की भरने को उड़ान ।

पावन शिक्षा के मंदिर के ,
वह  ही भगवान  कहाते हैं ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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