संदेश
पर्यावरण संरक्षण - कविता - रमाकांत सोनी
कुदरत का उपहार वन, जन जीवन आधार वन। जंगल धरा का शृंगार, हरियाली बहार वन। बेज़ुबानों का ठौर ठिकाना, संपदा का ख़ूब खजाना। प्रकृति मुस्कुरा…
चंचल कलियाँ - कविता - संगीता राजपूत 'श्यामा'
ऋतु सावन की झोंके खाए कजरी मल्हार मे ठनी झूले झूल उठे डाली पे कली मकरंद संग सनी। नाच रहे हैं पत्ते देखो मेघ द्वार बरसे बूँदे घटा म…
महकती बहारें - कविता - रमाकांत सोनी
फ़िज़ाओं में ख़ुशबू फैली खिल गए चमन सारे, झूम-झूम लगे नाचने लो आई महकती बहारें। वादियों में रौनक आई लबों पे मुस्कानें छाई, प्रीत भरे तरा…
प्रकृति का अनोखा अवतार - कविता - प्रतिभा नायक
भोर भई भानु चढ़ आए नीले अनन्त आकाश पर सूर्य की ललित लालिमा प्रभात गीत गाए गगन पर। चढ़े सूरज सीस पर धूप चुभती चटक सूई सी शूल समान दिनकर…
मायूस धरती - कविता - डॉ॰ मीनू पूनिया
आँचल में मैंने तुम्हे खिलाया, बारिश का निर्मल जल पिलाया, आशियाना बनाने को दिया स्थान, बरसाया मैंने तुम सब पर दुलार। फल खाकर मेरे मिटाई…
प्रकृति - कविता - भुवनेश नौडियाल
प्रकृति है, अद्भुत, अनोखी, सुंदरी न्यारी, निर्झर बहती नदिया सारी। जिसमें रहते जीव अनोखें, प्रकृति में ही रहते मोहे। मनमोहक है, रूप नि…
हरित वसुंधरा - कविता - अनिल मिश्र प्रहरी
देख अम्बर मेघ फूलों के अधर लाली, प्रेमरत मधुकर, मगन मकरंद, तरु-डाली। वल्लरी झूमे, पवन मुकुलित कली चूमे, कर रही अरुणिम प्रभा रुत मत्त, …
ग्लोबल वार्मिंग - कविता - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी
धरती गरमा रही है तो क्या हुआ? कुछ गर्माहट आप तक पहुँची क्या? धरती गरमाने का मतलब? "ग्लोबल वार्मिंग" अंग्रेजी में? हाँ सुना त…
तुम मुझे संरक्षण दो, मैं तुम्हें हरियाली दूँगा - कविता - पारो शैवलिनी
काटो और काटो और और काटो क्योंकि, कटना ही तो नियति है मेरी। अगर कटूँगा नहीं तो बटूँगा कैसे? कभी छत, कभी चौखट कभी खिडक़ी, कभी खम्भों क…
सावन - दोहा छंद - दीपा पाण्डेय
धरती माँ दिखला रही, सबको अपना रूप। सावन में बरसात का, होता यही स्वरूप।। नदियों की गति तीव्र है, जाओ कभी न पास। जाने कितने बह गए, थे जो…
प्रकृति संरक्षण - गीत - डॉ. शंकरलाल शास्त्री
महिमा है जो कुदरत की, लहरें आई कुदरत की, धरती माँ जो ओढ़े है, हरियाली की चुनरी सी। वेदों की ऋचाओं में, हवाओं की फ़िज़ाओं में, कण-कण में…
पर्यावरण और मानव - घनाक्षरी छंद - अशोक शर्मा
धरा का शृंगार देता, चारो ओर पाया जाता, इसकी आग़ोश में ही, दुनिया ये रहती। धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और ज़मीं, जीव सहभागिता को, आवरन क…
एक जवाब - कविता - राम कुमार निरंकारी
एक बात अगर मैं पूछूँ बोलो जवाब दोगे...? कौन है वो जो हरे भरे पेड़ो के काटने का अधिकार देता है? कौन है वो जो इठलाती चलती नदी की चाल ब…
संरक्षण करो - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
जल, जंगल, ज़मीन ये सिर्फ़ प्रकृति का उपहार भर नहीं है, हमारा जीवन भी है हमारे जीवन की डोर इन्हीं पर टिकी है, धरती न रहेगी तो आख़िर कैसे …
हमारी पारंपरिक संपदाओं को बचाएँ - आलेख - डॉ. शंकरलाल शास्त्री
नया नौ दिन और पुराना सौ दिन की कहावत भला आज कितनी सच होती जा रही है यह बात किसी से छिपी नहीं है। दशकों पूर्व जब हम घर से स्कूल आते-जात…
मनोहर पहाड़ - कविता - कमला वेदी
हरियाली के आँचल में बसती चलती साँसें मेरी, सुखद, शीतल समीर में उड़ती जाती आशाएँ मेरी। मनोहर पर्वत पहाड़ों में बसता है मन प्राण मेरा,…
सामूहिक रूप से गवाही - कविता - डॉ. कुमार विनोद
प्रकृति के शाश्वत क्रम में, समुद्र में ज्वार-भाटे आते रहते हैं, यह क्रम, जैसे ही व्यतिक्रम होता है, प्रकृति के साथ होती है मनमानी। निश…
पर्यावरण - गीत - महेश चन्द सोनी "आर्य"
पर्यावरण हमारा, हम सबको वो प्यारा। पर्यावरण हो शुद्ध अगर तो जीवन सुखी हमारा। हवा शुद्ध नहीं शुद्ध नहीं जल, रोज़ करें पेड़ों का क़त्ल ह…
अंकुरण - कविता - असीम चक्रवर्ती
सूरज मेघों के संग लुका-छिपी खेल रहा था, देखते ही देखते बर्षा की बूँदें झर झर टपकने लगीं। माटी की सोंधी महक फैल गई चारों ओर वातावरण म…
आओ इस धरा को हरित बनाएँ - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"
आओ इस धरा को हरित बनाएँ एक एक पेड़ से कर शुरुआत, आओ क़सम ये खाएँ, यह सिलसिला बारंबार अपनाएँ, आओ इस धरा को हरित बनाएँ। कल जो काटे थे पेड…